भारत मन्त्री के नाम भेजा खरीता तथा भारत मन्त्रीका उत्तर, आदि बातोंने उस अविश्वासको और भी दढ़ कर दिया है।
ऐसी अवस्थामें मेरे लिये केवल दो ही मार्ग खुले हैं। या तो निराश होकर ब्रिटिश साम्राज्यके साथ हर तरहका सम्बन्ध त्याग हूं या यदि ब्रिटिश शासन प्रणालीकी आन्तरिक मदिच्छामें मेरा अब भी विश्वास शेष है तो मुझे ऐसे उपाय निकालने चाहिये जिससे इन बुराइयोंका प्रतोकार हो जाय और जनताका इनपर विश्वास जम जाय। ब्रिटिश प्रणालोको आन्तरिक विशिष्टतामें मेरा विश्वास अब भी शेष है। मुझे पूर्ण आशा है कि यदि किसी भी उपायसे हमने यातनासहनेकी पूर्ण योग्यता दिखलाई तो हमारे साथ न्यायाचरण अवश्य होगा। हाँ, इतना मैं अवश्य कह देना चाहता हूं कि जो कुछ अनुभव मुझे प्राप्त हो सका है उससे मेरी यह धारणा हुई है कि इस प्रणालीके अन्दर उन्हींको अधिक सहायताकी आशा रहती है जो स्वयं आप अपनी सहायता करना चाहते हैं। यह दुर्बलोंकी रक्षाका कोई प्रबन्ध नहीं करता। बलिष्ठोंकी इसमें खूब पूछ है। अपनी शक्ति बढ़ानेका उन्हें पर्याप्त साधन मिल जाता है और दुर्बल इसमें पीस दिये जाते हैं ।
इसीलिये मैंने अपने मुसलमान मित्रोंसे कहा है कि यदि
खिलाफतके प्रश्नका निपटारा प्रधान मन्त्रीके दिये वचन तथा
मुसलमानोंकी सदिच्छाके अनुसार न किया जाय तो आप ब्रिटिश
सरकारके साथ सम्बन्ध न रखें और मैंने हिन्दुओंसे भी मुस. लमानोंका साथ देने के लिये कहा है।