राजा प्रजाका यह विवाद इतनी दूरतक न बढ़ने पाता पर कांग्रेस ने कुछ दिन और परीक्षा करनी चाही।
समय की गति से भारत के शासन की बागडोर दो उदार अंग्रेजों के हाथ में आई। लार्ड मोर्ले भारत मन्त्री बनाये गये और लार्ड कर्जन की बानगीक बाद लार्ड मिण्टो वायसराय बने। लार्ड मोर्ले ने उहीप्त अनिको शान्त करने का एक-मात्र उपाय माड़टोको फंसा रखने में देखा। चट उन्होंने सुधार की योजना की और उसके अनुसार भातीय शासन व्यवस्था में कुछ सुधार किये गथे। उन सुधारों से नरम दल वाले भी सन्तुष्ट नहीं थे पर जो कुछ मिल रहा था उसे भी छोड देना उन्होंने उचित नहीं समझा। राष्ट्रीय दल वाले इसकी पोल पहले से ही जानते थे। उन सुधारों के साथ दमनको चक्की भी अपने बल भर चलाई गई। इस काम मे न तो मोर्ले साहब ने कोई कसर रखी और न मिस्टो साहबने ही कोई बात उठा रखी। सेडिसस मीटिङ्ग (गैर कानूनी सभा) ऐक पास हुआ,प्रेस ऐकृ पास हुआ। इन दो तरीकों से कौंसिल से बाहर जनता की बोलने और लिखने की स्वतन्त्रता एकदम से अपहरण कर ली गई। १८१८ के गैर काननी विधान का प्रयोग पूर्ण स्वत- न्त्रता के साथ होता गया। लार्ड मिष्टो और लार्ड हार्डिक कोई भी इसके प्रयोगसे न थके, न पाये। बंगाल के