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खिलाफतकी समस्या


खिलाफत डेपुटेशन ने बड़े लाट के पास जो मेमोरियल भेजा है उसकी मांगे न्यायपूर्ण है पर मुहम्मद अलीने जो पत्र भेजा है उसमें इनसे विरोधी भाव है ।

इस प्रश्नपर मैंने श्रीयुक्त अण्डरूज के साथ पूर्णरूप से विवाद किया। उनकी इच्छा है कि मैं अपनी स्थिति को पहले की अपेक्षा और भी साफ कर दूं। उनके इस विवादका एकमात्र अभिप्राय यही था कि वे मुसलमानों की मांग को उचित समझते है इसलिये विवाद द्वारा वह उसे और भी दृढ़ कर देना चाहते हैं जिससे इङ्गलैण्ड और विशेषकर मित्र राष्ट्र शर्म खाकर भी सन्धि शापर पुनः विचार करें ।

इस विषय में मैं श्रीयुक्त अण्डरूज का निमन्त्रण सहर्ष स्वीकार करता हूं। सफाई के लिये मैं इतना लिख देना आवश्यक समझता हूं कि मैं धर्मके उस सिद्धान्तको स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं हूं जिससे दिल न भरे और जो सदाचारकी विरोधी हो। यदि सदाचारकं प्रतिकूल न हो तो मैं अनुचित धार्मिकताके भावको भी स्वीकार करनेको तैयार रहता हूँ। मै खिलाफतके प्रश्नको उचित और न्याययुक्त समझता हूँ। इसके साथ ही साथ इसका समर्थन मुसलमानोंकी धार्मिक सिद्धान्तों द्वारा भी होता है, इसलिये इसकी शक्ति और भी मजबूत हो जाती है ।

मेरी समझ में मिस्टर मुहम्मद अलीके विचार सर्वथा ठीक है, उसमें एक भी अधिक शब्दका समावेश नहीं है। इसमें