तुझीक हिमायतियों ने इस बातको स्वीकार किया है कि इस सम्बन्धमें अस्ट्रिया हङ्गरीको जितना दण्ड दिया गया है
उसके अनुमानसे तुर्कोका दण्ड कहीं कम है। उस पत्रने अपने
अग्र लेखमें और भी आगे कदम बढ़ाया है और खिलाफत
कॉनफरेंसमें महात्मा गान्धीने जो बातें कही थी उनसे कुछ
परिणाम निकाला है। पर वह परिणाम क्या है ? वह
साम्राज्य जिसमें प्रायः ५ करोड़ मनुष्य रहते हैं और जिसका
क्षेत्रफल प्रायः २६०,००६ बर्ग मील है, एकदमसे छिन्न भिन्न
कर दिया गया और उसमें से बड़े बड़े टुकड़े भिन्न भिन्न
जातियोंको दे दिये गये। पर एक बात है। आस्ट्रिया
हङ्गरीके साथ तुर्कीका मुकाबिला करनेमें एक बात छोड़
दी जाती है और वह यह है कि जातीयताकी हैसियतसे
दोनों साम्राज्यों की अवस्थामें घोर अन्तर है । आस्ट्रिया
हङ्गरी साम्राज्य भिन्न भिन्न जातियोंका सम्मिश्रण है। उसमें
प्रायः एक करोड़ जर्मन हैं, उतने हो भगियास है, ८०लाख
जेको हैं, ४० लाख पोल हैं, २० लाख यहूदी हैं और उसी
प्रकार सर्विया, रुमेनिया, क्रोटिया, तथा अन्य जातियां हैं। पर
तुर्की साम्राज्यकी जातीयता एक है जिसमें किसी तरहका विच्छेद
नहीं किया जा सकता। यूरोपमें तुर्कोका जो कुछ शेष रह गया
है उसमें अधिकांश संख्या तुर्को की ही है और एशियाई तुर्कोमें
तो मुसलमानोंका हो बोल बाला हैं। इस अवस्थामें एक
जातिके लोगोंको छिन्न भिन्न करके भिन्न भिन्न दलमें बांटना और
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खिलाफतका प्रश्न