तक के लिये जिम्मा ले ले और उनकी देख रेख करता रहे। पर इङ्गलैण्ड ने इसे अस्वीकार कर दिया। इसका परिणाम यह
हुआ कि जो लोग इस बातके पक्ष में थे वे हताश हो गये। और
उसी निराशाको अवस्थामें उन्होंने कहा:---"उन्हें एकाकी कोई
काम करने का साहस नहीं हो सकता था। इङ्गलैण्ड रूस का
पाँछ हो रहा है। इस समय इस तीसरी शक्ति हो रही है।
इसलिये यदि हम लोगों को कहींसे आशा है तो जर्मनी
से।... ..लोग कहते हैं कि तुके लोग अंग्रेजों के दुश्मन हो
गये। मच बात यह है कि अपनी आखा बनाये रखनेके लिये
उन्हें युद्ध करना लाचारी था। पर उन्होंने तबतक शस्त्र नहीं
उठाया जबतक इङ्गलैण्ड ने जारका साथ देकर उनसे खुली
शत्रुता नहीं प्रगट को क्योंकि तुर्कोका मटियामेट कर देना
रूमका प्रधान लक्ष्य था ।
तुर्की के विजित राष्ट्र होने का उलाहना मुसलमानों को बराबर को दिया जाता है । उनको समझ में यह बात मजे में आ गई और उन्होंने यह भी समझ लिया कि इस तरह के प्रश्नों को द्वितीय स्थान दे देनेमें ही सुविधा है अर्थात् राजनैतिक क्षेत्र में आवश्यकताके समय जरा दब जानेसे ही अच्छा होता है।
मुसलमानों के बीच में इस प्रश्नपर कितनी हलचल मच रही है
इसकी जानने की पूरी चेष्टा इस लेखके लेखक ने नहीं की है।
केवल चन्द लोगों की बातोंको ही उलटी सीधी समक
कर उसने उन्होंने अपना तर्क भिड़ाना शुरू कर दिया है।