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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५०९

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खिलाफतका प्रश्न


विजित जाति के साथ किया जा सकता है और वह व्यवहार भी धीरता तथा धोरता के नामपर न होकर व्यवसायिक लाभ के लिये किया जाता है जबकि उस जाति के राजनीतिज्ञ अभी हालतक यही कहते आये हैं कि तुर्कों का नाश ब्रिटन का नाशसमझना चाहिये ।

टाइम्स फे संवाददाता महाशयने बडे हो सन्तोष और अभिमान के साथ जोर देकर लिखा है कि तुर्कीको फांस और इङ्गलैंड का कृतज्ञ होना चाहिये। जिन बातों के लिये ये लेखक महाशय तुर्को को कृतज्ञ होने के लिये परामर्श देते हैं उनमेंसे अधिकांश ( प्रायः सभो ) ऐसी हैं जो तुर्को के लाभ के ख्याल से न की जाकर फांस और ब्रिटन के निजी लाभ के लिये की गई है। और यदि हम इस बात का मान भी लें कि वे इस योग्य थी कि उनके लिये तुर्की को इनका कृतज्ञ होना चाहिये था तो कहीं से यह बात भी नहीं झलकती कि तुर्क उन बातों को एकाएक भूल गया और उनके साथ दुश्मनी कर बैठो। उस इतिहासक लेखकने लिखा है । लोगों का कहना है कि तरुण तुर्क जर्मनी के पक्षपाती थे इसलिये आरम्भ से हो इङ्गलैण्ड के दुश्मन थे। पर यह सर्वथा असत्य है। क्रान्ति के पगफा में यही भाव झलकता है कि तरुण तुके सदा अंग्रेजों के पक्षपाती थे और मैं अपनी व्यकिगत जानकारी के आधार पर भी कह सकता हूं कि १६१६ में तरुण तुर्को ने यह अभिलाषा प्रगट की थी कि इङ्गलैण्ड सम्पूर्ण तुर्की साम्राज्य का, मय सेना के, दस वर्ष

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