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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५३०

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खिलाफतकी समस्या

भाषणमें मिस्टर आस्कियने कहा था - 'यदि कोई बात हमारे दृष्टिपथमें आ सकती है तो वह यह है कि हमें उनके विरुद्ध धार्मिक आन्दोलन उठाना चाहिये ।” पर इसके बाद ही उन्होंने जिन शब्दोंका प्रयोग किया था उससे उनका क्या अभिप्राय हो सकता है। यदि शब्दोंका प्रयोग उनके ठीक अर्थमे हुआ है तो मैं साहसके साथ कह सकता है कि उतना शब्द कहनेके बाद मिस्टर आस्किथने अपने भाषणमें जो शतके शब्द लगाया उनसे स्पष्ट था कि भारतीय मुसलमानोंके धार्मिक भावका उन्हें पूरा ख्याल था। अगर उनके भाषणका केवलमात्र इतना ही अभि-प्राय था तो अपने मतके समर्थनमे और कुछ न कहकर मैं कह सकता हूं कि यदि सैन रेमो कान्फरेंसमें स्वीकृत प्रस्ताघोंको कार्य क्रममें लानेकी व्यवस्था की जाय तो मिस्टर आस्विथके उपरोक्त आशाकी बातें भी मिट्टोमें मिल जाती हैं। पर मैं अपने कथनके समर्थनके लिये मिस्टर आस्क्विथने उत्तराधिकारीके भाषणका उल्लेख कर देना उचित समझता हू । यह भाषण उन्होंने १९१६ मे किया था, जिस समय युद्धकी गति मित्रोंके लिये भयावह हो रही थी और भारतीयोकी सहायताकी आवश्यकता १९१४ से कहीं अधिक थी। जबतक ये वचन पूरे नही किये जाते बराबर दोहराये जायंगे। उन्होंने कहा था -"यह युद्ध हम लोगोने इस लिये नहीं ठाना है कि तुर्कोंकी राजधानी छीन ले या एशिया माइनरकी समृद्ध भूमि और थेस प्रान्तसे-जिनमें तुर्कोंकी ही अधिकता है-तुर्कीको निकाल बाहर करें। यदि अक्षरश