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( मई १२, १६३०)
'मैंने खिलाफत आन्दालन में भाग क्यों लिया' शीर्षक अपने
लेख मे मैंने प्रधानमन्त्री के दिये हुए वचन का उल्लेख किया था।
उसके मबध में मैंने जो कुछ लिखा है उसकी सचाई पर आक्षेप
करते हुए टाइम्स आफ इण्डिया ने विविध विषय' में उसपर एक
नोट लिखा है। अपने मत के समर्थन में उसने नवम्बर १०, १६१४ को मिस्टर आस्क्विथ के गिल्डहाल के भाषण का उल्लेख किया
है। जिस समय मैंने उस लेख को लिखा था मुझे भी मिस्टर
आस्विथ के भाषण का ध्यान था। मुझे खेद था कि मिस्टर
आस्क्विथ ने वह भाषण किया क्योंकि उसके पढने से स्पष्ट हो जाता है कि वक्ताके भाव स्पष्ट नहीं हैं। क्या यह कभी भी सम्भव है कि तुर्की साम्राज्य से भिन्न भी तुर्को का कोई स्थान हो सकता है ? ना यूरोप और एशिया में से तुर्की साम्राज्य की मृत्यु का अभिप्राय इसके अतिरिक्त और क्या हो सकता है कि संसार में से स्वतन्त्र तुर्को शासन और तुक जातीयता का नाश कर दिया जाय । क्या यह सदासच रहा है कि तुर्की का शासन सदा के लिये संसार के इतिहास में काला धब्बा रहा है ? क्या तुर्क सदा पृथ्वी के किसी न किसी टुकडे का अपने अपवित्र हाथ से कलंकित ही करते रहे हैं ? अपने