एक ओर तो भारत धन जनसे साम्राज्य की विपति निवारण में इस तरह दत्तचिस हो रहा था और आशा कर रहा था कि युद्ध समाप्त होते ही सम्राट तथा प्रधान मन्त्री के वादे पूरे किये जायंगे और सम्राट के इस कथन पर 'कि सकट के समय दी हुई सहायता पर ही भारत का भविष्य निर्भर करता है" पूर्ण विचार किया जायगा, उधर दूसरी ओर दूसरो तरह की योजना की जा रही थी। जो लोग अब भी ब्रिटन को सशंक नेत्रों से देख रहे थे उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव होने लगा कि विटन जिस घोषणा के अनुसार युद्ध मे प्रवृत्त हुआ है और भारतवर्ष से सहायता माग रहा है, युद्ध समाप्त होते हो उसको किनारे रख देगा और पूर्वकाल की तरह अपनी वही नीति चलावेगा। इसका प्रथम आभास श्रीमती एनी बेसेएट तथा उनके दा नायकों के न्यायरहित नजरबन्दी में मिला। इसके बाद देश के भनेक नवयुवक विना किसो अपराध के, विना विचार के दनादन जेल में दूले जाने लगे। अब लोगों ने देखा कि भारत रक्षा कानून- का समर्थन करके हमलोगों ने कितनी भूल की। पर उस समय क्या समझते थे कि इस तरहकी चालबाजी को जायगी। कौंसिल में स्पष्ट शब्दों में विश्वास दिलाया गया था कि इसका प्रयोग शत्रु के गुप्त अभिनाय को नष्ट करने के लिये किया जायगा ‘पर यहां तो इसके भाड में भाज राजनैतिक जीवन को कुचल रालने का ही उपाय हो रहा था। यह तो था ही। इसी समय
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