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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५३

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वार कान्फरेंस हुई जिसमें बड़े लाटने सम्राट के निक्ष लिखित निवे. दन सुनाया था:.-"इस समय साम्राज्य सकट में है। यही भारत की राजभक्ति का समय है और ऐसे ही अवसरों की सेवायें सम भी जातो हैं " निदान अनेक प्रान्तों में इस तरह की कान्फरें से हुई।

दिल्ली वार कांफरेन्स में स्वयं महात्माजी उपस्थित थे। उन्होंने राजभक्ति के प्रस्ताव का समर्थन किया। इसका परिणाम यह हुआ कि धन तथा जनसे आशातीत सहायता मिलने लगी। भारत ने उस समय धन तथा जनसे जो सहायता दो थी उसका अंक सरकारी रिपोर्ट से उद्धत कर दिया जाता है। इन अंकों के देखने से यह अनुमान हो जायगा कि भारत की सेवायें कितने वजन की थीं। भारत से कुल ६,८५,००० सैनिक युद्ध के लिये तैयार किये गये। इसमें से ७,६१,००० सैनिक तो केवल युद्ध के दिनों में तैयार किये गये थे। इनमें से ५,५२,००० समुद्र पार भेजे गये थे। युद्ध के अतिरिक्त अन्य कामों के लिये भारत से ४,७२,००० आदमी तैयार किये गये। इसमें से ३.९१,००० समुद्र पार भेजे गये थे। अर्थात् कुल मिलाकर भारतसे १४५ ७००० जबान लिये गये उनमेंसे १,४३,००० समुद्र पार भेजे गये जिनमें से १,०६,५६४ खेत रहे। १,७५,००० पशु भो भेजे गये थे १,८५५ मील रेलवे लाइन, २२६ लोकोमोटिव इजन, ५६८६ गाड़ियां ६४० भित्र भिन्न तरह के जहाज और नावें युदमें भेजे गये। रुपये से भारत ने जो सहायता की उसका अन्दाजा लगाना जरा कठिन है, पर पोसत अनुमान दो अरबका है।