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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५६५

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टाइम्सका विरोध

किया गया है और न आस्ट्रिया हंगरीके साथ। समस्त तुकी साम्राज्यका माहरण कर लिया गया है और सिवा राजधानी (कुस्तुन्तूनिया ) के अब तुर्की साम्राज्यके हाथमें कुछ नहीं रह गया है। उसमें भी इस तरहके प्रतिबन्ध लगा दिये गये हैं कि कोई भी आत्माभिमानी मनुष्य उसे स्वीकार करनेके लिये तैयार नहीं हो सकता, एक राजाको तो बात हो न्यारी है।

टाइस्ल आफ इण्डियाका कहना है कि मुसलमान डेपुटेश-नक प्रतिनिधियोंने इस बातकी छानबीन नहीं की है कि तुर्कीने ब्रिटिशका साथ क्यों नहीं दिया। पर यह तो कोई छिपा कारण नहीं है। रूस तुर्को का कट्टर शत्रु है ओर उस समय तक मित्रदलोंमें रूस भी सम्मिलित था। इसलिये मित्रदलोंमें शामिल होना तुका के लिये कठिन था। युद्धके दिनोंमें रूस तुर्कीका नाका रोके खड़ा था और प्रतिक्षण चोट करनेको तैयारी कर रहा था। ऐसी अवस्था मित्रों का साथ देना तुर्कों के लिये असम्भव था। ग्रेट ब्रिटनपर तुर्मीका सन्दह स्वाभाविक था। उसे अनुभव था कि बलगेरियन युद्ध के समय ब्रिटनने उसकी जरा मी सहायता नहीं की थी। इटाली युद्धके समय भी ब्रिटनने मानी मैत्री नहीं निबाही। इस अवस्थामें जर्मनका पाया पकड़ना स्वाभाविक था। जबकि भारत के मुसलमान नेता उसका साथ देनेके लिये तैयार थे तो उसके (तुकोंके ) राज- नीतिश ब्रिटिशका साथ कर लिये होते क्योंकि ऐसी अवस्थामें मित्रोंका साथ देनेसे ब्रिटन उन्हें किसी तरहकी क्षति नहीं