पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५६४

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खिलाफतकी समस्या


हम लोगोंने यह लिखा है कि यदि सन्धिको शर्तों में उचित संशोधन न हो जाय तो बड़े लाटको अपना पद त्याग देना चाहिये -कड़ी आलोचना की है।

मुसलमानोंने अपने डेपुटेशनमें कहा है कि ब्रिटिश साम्रा. ज्यको तुर्की के साथ उसो तरहका व्यवहार नहीं करना चाहिये जैसा एक विजेता किसी विजित शत्रुके साथ करता है । टाइम्स आफ इण्डियाने इस मतका विरोध किया है। पर मेरी समझमें डेपुटेशन के प्रतिनिधियोंने अपने इस कथनका पूरी तरहसे सम. र्थन किया है। उन्होंने कहा है:- "हम लोगोंकी यह प्रार्थना है कि तुर्को के प्रश्नको हल करते समय ब्रिटिश सरकारको भार- तोय मुसलमानो के धार्मिक भावोंका भी ख्याल करना होगा जहां तक वह न्याययुक्त और उचित है।" मेरा कहना है कि यदि सात करोड़ मुसलमान साम्राज्यको प्रजा हैं तो उनकी मर्यादा अवश्य पालनो चाहिये और तुर्को साम्राज्यका किसी तरहका दण्ड नहीं दिया जाना चाहिये। लड़ाईके जमानेम तुर्कीने क्या किया, इसका उल्लेख यहांपर करना अप्रासंगिक होगा। उसके लिये उसे काफो दण्ड मिल गया। इस पर टाइम्ल आफ इण्डिया प्रश्न करता है :-क्या तुर्कीके साथ अन्य विजित शक्तियों से खराब व्यवहार किया गया है ?" मैं सम. झता हूं कि यह बात इतनी स्पष्ट है कि इसके बारे में कुछ पूछ- नेकी आवश्यकता ही नहीं प्रतीत होती थी। जो व्यवहार तुकीके साथ किया गया है वह व्यवहार न तो जर्मनीके साथ