पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५७४

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खिलाफतकी समस्या

था जो मित्रोंको नेकनियतीका पार कर गया। उन लोगोंकी दूरदर्शिता धुंधली पड़ गई। परम्परागत सिद्धान्त, नेकनियती,वादा तथा प्रतिज्ञाओंकी बात उन्होंने ताखपर रख दी। इस महायुद्धका यह अतीव खेदजनक परिणाम है। पर इससे भी खेदजनक परिणाम यह है कि जो अंग्रेज जाति युद्धके लिय न्याय, सचाई और अधिकारकी घोषणा जोर शोरसे कर रही था आज बही कुटिल नीतिके चक्कर में सबसे पहले फंस गई है। उसने इस बातको प्रमाणित कर दिया है कि इस कुटिल नीतिके विधा- यक वही हैं! प्रतिस्पर्धी मित्र राष्ट्रोंके राजनीतिज्ञों तथा समा-चार पत्रोसे जो बातें प्रगट हुई हैं उनसे स्पष्ट है कि इङ्गलैण्डके प्रधान मन्त्री अपने साम्राज्यवादी दलके साथ तुर्कोके अंगभंग और मटियामेटकी नीतिका प्रतिपादन सबसे प्रथमसे ही करने चले आ रहे हैं। जहां तक मालम हुआ है स्टम्बोलसे सुल.तानके भगानेका प्रस्ताव उन्हींने उपस्थित किया था। आज तुर्की में अधिकांश सेना ब्रिटनकी ही है। अपने अनुयायो यूनानको सके उत्तम उत्तम प्रान्तोंको उसीने दिलवाया है। एशिया- मानइरके समृद्ध प्रदेश उसकी ही देख रेखमें हैं। फारसपर उनका पूर्ण अधिकार है और भारतके साथ वह स्थलमार्गद्वारा उसे जोड़नेकी व्यवस्था कर रहा है। यदि इन ज्वलन्त प्रमाणों के रहते किसी और प्रमाणकी आवश्यकता प्रतीत हो तो वह भी मिल सकती है। उस प्रकारका प्रमाण इटालीके प्रधान सीनि-यर निटीका असोसियेटेडके प्रतिनिधिके साथ वार्तालाप है जिसे