समर्थ हो सकता है। मेरे एक मित्रने जोकि अकसर
मेरे व्याख्यान सुनते रहे हैं, एक बार मुझसे पूछा कि आप
ताजिरात हिन्दको राजविद्रोहको दफाके अन्दर तो नहीं आ
जाते। मैंने इस सम्बन्धमें पूरी तरह विचार नहीं किया
था तोभो मैंने उत्तर दिया कि गालिबन मैं उसके अन्दर
आ जाउँगा। और यदि मेरे ऊपर उस दफाके अनुसार
मुकदमा चलाया जायगा तो मैं अपनेको निर्दोष नहीं कहूँगा,
क्योंकि मैं यह अवश्य स्वीकार करता हूं कि मैं वर्तमान
सरकारसे किसी प्रकारका प्रेम रखनेका बहाना नहीं कर
सकता और मेरे व्याख्यानोंका उद्देश्य यह होता है कि
लोगोंका प्रेम सरकारके प्रति इतना घट जाय कि वे उसे
सहायता देने या उसके साथ सहयोग करनेमें लज्जा अनुमान
करने लगे. क्योंकि वह अब विश्वास अथवा सहायताकी
पात्र नहीं रही है।
मैं ब्रिटिश सरकार और भारत सरकारमे कोई भेद
नही समझता। भारत सरकारने खिलाफतके सम्बन्धमें वही
नीति स्वीकार कर ली है जो कि ब्रिटिश सरकारने उसे
स्वीकार कराई है और पंजाबके मामले में ब्रिटिश सरकारने
उस वीर और साहसी जातिको नामर्द बनानेकी नितिका
समर्थन किया है जिसे भारत सरकारने प्रारम्भ की
थी। ब्रिटिश मन्त्रियोंने अपने दिये हुए क्वनका भंग किया
है और भारतके सात करोड़ मुसलमानोंके हृदयोंमें बुरी