पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५९

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कुम्भकणों निद्को त्यागकर उठ बैठी है और अपने अतुल पराक्रम तथा प्रमाध का स्मरण कर रही है। मानों उन्होंने पुन र्जीवन लाम किया हो।

दिल्ली की जनता क्षुब्ध थी। महात्मा गान्धी ने उन्हें शान्त करने के लिये ८ अप्रेल को दिल्ली के लिये प्रस्थान किया। पर अधिका- रियों को यह अभिप्रेत न था। मार्ग में ही उनपर नोटिस तामील की गई कि वे दिल्ली तथा पञ्जाब में न घुसे। सचे सत्याग्रही की हैसियत से उन्होंने उस बेजा आना को मानना स्वीकार नहीं किया। वे गिरफ्तार कर लिये गये और बम्बई लौटाये मये। इसका बुरा असर पड़ा। इस समाचार के फैलते ही लोग उत्तेजित हो उठे। पजाब के लोगों में अधिक जोश फैला। इलका एक कारण वहा के छोटे लाट सर माइकल ओडायर का दमनकारी शासन था जिसके मारे प्रजाके नाकों दम हो गया था। क्रोध और रोष का प्याला लबालब भर गया था। केवल उसमें एक ठेस लगने की आवश्य-कता थी। महात्माजी की गिरफ्तारी ने वही काम किया। ये सब बातें आग लगाने के लिये काफी थीं। बीच में ही ओडायर साहय ने एक और कार्रवाई कर दी जिससे उबाला मुखी फट पड़ा और उसकी लपट सारे पजाब में फैल गई। १०वी अलको बिना किसी कारण के मामृतसर के दो प्रधान नेता डायर सत्य. पाल और डर किचलू सर माइकल मोडायर की आमाले निर्वासित किये गये। इस साबाद से धोग शोक छा गया।