बताती और दूसरे उन्हें हर तरह के हिंसा के भाष को स्थान कर सचाई का अनुसरण करना था अर्थात् उन्हें मनसा,वाचा या कर्मणा या किसी भी तरह से किसी के जान माल या सम्मति पर आक्रमण नहीं करना था और न वे झूठ बोल सकते थे। तदनुसार २३ मार्च को महात्मा जीने सूचना निकाली कि इस व्रत में दीक्षित होने के पहले पात्मा को पवित्र तथा शुद्ध करने के लिये २४ घंटे का उपवास तथा प्रार्थना करना आवश्यक है और इसलिये छ अप्रैल (रविवार) का दिन नियत किया जिस दिन अखिल भारत वर्षीय हड़ताल करके लोग कोई काम न करें और सारा दिन केवल उपवास और प्रतमें बितायें। समस का भूल के कारण दिल्ली में ३० मार्च को हो हड़- ताल मनाई गई। उस दिन रेलवे स्टेशन के कुछ दुकानदारों तथा हड़तालियों के बीच झगड़ा तथा दंगा फसाद हो गया। अधकारियों ने तुरन्त सेना मंगाई और गोली चलवा दी। परिणाम यह हुआ कि कुछ आदमी मारे गये। ६ अप्रैल को अखिक भारत वर्षीय हड़ताल हुई। हड़साल पूर्ण समारो हले मनाई गयी और/पूर्ण शान्ति से बीती। कहीं भी किसी तरह का उपद्रव नहीं हुमा। भारत वर्ष के इतिहास में यह पहला ही अवसर था जबकि किसी इस बरह के सार्वजनिक काम में अमीर,गरीब, धनी, निर्धन, छोटे बड़े, शिक्षित अशिक्षित, शहरी तथा देहाती लोगों ने माम लिया था। इस समारोह को देखकर यही प्रतीत होता मानों भारत की सन्तान अपनी सदियों की
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