पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५९२

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खिलाफतकी समस्या


भय है कि जनता फिर उत्तेजित हो जायगी, काबुसे बाहर हो जायगी और पारसालकी तरह अति कर और नृशंस काम कर बैठेगी जिसका मुकाबिला अर्वाचीन इतिहासमें नहीं हो सकता। मैं भी इन जन साधारणके आतङ्कसे जितना डरता हूँ, सरकारके आतङ्कसे उतना नहीं डरता। सरकारको ज्यादतियां एक संस्था की ज्यादतियां हैं पर जनताकी ज्यादतियां राष्ट्रीय बदमिजाजी. का नमूना है, इसलिये इसको कब्जे में करना नितान्त कठिन है। यदि सरकारने कोई बुराई की है तो वह सबपर व्यक्त है और हम उसके लिये उसे दण्ड दे सकते हैं पर जनतामें यदि उपद्रवी पैदा हो जाते हैं तो उनका पता लगाना और उन्हें दण्ड देना कठिन है। पर केवल इस बातकी सम्भावना पर कि सरकार और साधारण जनता किसी तरहका उपद्रव या ज्याद- ती कर बैठेगी इसलिये इस तरहके आन्दोलनको न चलाना तो बुद्धिमानीका सबूत नहीं होगा। भूल और असफलतासे ही हमें जीवन में शिक्षायें मिलती हैं। केवल हार खाकर या भूल करनेके कारण सेनापति युद्धसे मुंह नहीं मोड़ सकता। यही बात हम लोगोंके साथ भी लागू है। हमें असहयोग व्रतको तुरन्त ग्रहण कर लेना चाहिये और उसके लिये किसी तरहकी विपत्तिकी सम्भावना नहीं करनी चाहिये। आशा और विश्वा- सके सहारे हमें दिन प्रतिदिन आगे बढ़ना चाहिये । जैसा सत्या. ग्रह व्रत धारण करनेके पहले किया गया था, असहयोगव्रत धारण करनेके पहले भी व्रत और प्रार्थना करने होंगे। यह