राजनैतिक चालें चली जाती रहीं। निदान नवम्बर २३, १६१६ को दिल्ली में प्रथम खिलाफत कांफरेंस की बैठक हुई। उसमें मुस- लगानों ने महात्मा गांधी तथा अन्य हिन्दुओं को खिलाफत के प्रश्न में उनकी तत्परता के लिये धन्यवाद दिया और प्रस्ताव स्वीकार किया कि यदि खिलाफत का निपटारा मुसलमानो के धार्मिक भावों के अनुकूल हो तो कोई भी मुसलमान शान्ति उत्सव में भाग न ले और सरकार के साथ सहयोग करना त्याग दे और ब्रिटिश मंत्रीमण्डल तथा ब्रिटिश जनता का तुओं के साथ सन्धि तथा खिलाफत के मामलेपर मुसलमानों के हृदयो भावों की जानकारी कराने के लिये यूरोप मे एक प्रतिनिधिमण्डल भेजा जाय। अमृत- सर काग्रेस के साथ ही साथ खिलाफत काफरेंस की दूसरी बैठक हुई। इसमें पहली बैंठक के प्रस्तावों का समर्थन हुआ और बड़े लाट तथा तुर्कों के पास भी प्रतिनिधिमण्डल भेजने का निश्चय किया। सेन्ट्रल खिलाफत कमेटी को चन्दा एकत्रित करने का आदेश किया। दिसम्बर १६१६ मे मर आगा खां, सैय्यद अमीर अली तथा अन्य अनेक यूरोपियन तथा भारतीयों के हस्ताक्षर ले एक मेमोरियल प्रधान मंत्री की सेवाम उपस्थित किया गया। इसी समय मौलाना शौकत अली तथा मुहम्मद अली जेल से छोड़ दिये गये। उनके स्वतंत्र हो जानेस खिलाफत के प्रश्नने और भी जोर पकडा।
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