अन्सारी के सभापतित्व में बड़े लाटकी सेवा में मुसलमानो का एक डेपुटेशन भेजा गया। बड़े लाठने उस प्रतिनिधि मण्डलको ने उत्तर दिया, वह नितान्त असन्तोष जनक था। तदनुसार मुसलमानों ने अपना निर्णय निकाला कि यदि सन्धि की शर्ते मुसलमानों के हक में न हुई तो उनकी राजभक्ति पर कड़ी चोट पहुंचेगी इसलिये उनकी मांग थी कि अरे.चिया तथा अन्य मुसलमान धर्म क्षेत्र खलीफा के हाथ से न निकाले जायं तथा ब्रिटिश प्रधान मंत्रा मिस्टर टायड जार्ज ने जो वचन दिया है उसे पूरा किया जाय। इस समयतक विलायत डेपुटेशन भेजने की तैयारी हो चुकी थी। तीसरी खिलाफत कांफरेंस बम्बई में हुई। उसने इस डेपुटेशन में अपना दृढ़ विश्वास प्रगट किया और एक सूचना पत्र निकाला जिसमें मुसलमानों की मांग का सविस्तार विवरण था। इस सूचना पत्रको निकालते समय उसने साफ कह दिया था कि यदि मुसलमानोंकी इस माग मे जरा भी कमी की गई तो मुसलमानों के वार्मिक भावों पर गहरी चोट पहुंचेगी, ब्रिटिश प्रधान मंत्री तथा मित्रराष्ट्रों के प्रधान पुरुषों के दिये वचन का भंग किया जायगा और विश्वासघात समझा जायगा कि जब युद्धक्षेत्र मे रक्त बहाने के लिये मुसलमान सैनिकों की इतनी अधिक जरूरत रही तब तो उन्होंने हर तरह के वचन देकर अपना काम चलाया पर अब अवसर बीतते ही अपना वादा भूल गये। पर इसका परिणाम इनके लिये हानिकर होगा क्योंकि यह मांग केवल सारी मुसलमान प्रजा की ही मांग
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