साम्राज्य के भविष्य के लिये नितान्त चिन्तित कर दिया है वर्तमान सरकार की ओर से दिल फेर दिया है, और जिस तरह की राज भक्ति मैं इसके प्रति सदा से दिखलाता आ रहा था उस तरह की राजभक्ति से हमे विचलित कर दिया है।" पर इन सब बातों का सरकार पर दिखौथा कोई भी असर नहीं पड़ा। मुसलमानों के धार्मिक भावों की पूर्णतया अवज्ञा होतो रहा और साथ ही इङ्गलैण्ड मे लार्ड सभा तथा भारतीय अंग्रेज पंजाब के हत्याकारी जेनरल डायर आदि की प्रशसा करते ही गये। भारत के अंग्रेज तो यहां तक आगे बढ़ गये कि उन्होंने डायर स्मारक फण्ड खोल डाला और उसकी सहायता के लिये बहुत मा चन्दा एकत्रित किया। यूगपियनी का संस्थाये तथा भारतीय अग्रेजी पत्र जेनरल डायर की प्रशंसाके पुल बांधने लगे।
असहयोग आन्दोलन का मर्म समझाने के लिये महात्मा गांधी तथा मौलाना शौकत अली भारत के भिन्न भिन्न प्रान्तों मे भ्रमण करने लगे। इसी बीच में सितम्बर के प्रथम सप्ताहमे कलकत्ता में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन हुआ और लाला लाजपत राय इसके सभापति बनाये गये। चार दिन तक घोर वादविवाद होता रहा। अन्तमें कांग्रेस ने महात्मा गांधी के असहयोग प्रस्ताव को स्वीकार किया। महात्मा गांधी ने जो प्रस्ताव उपस्थित किया था उसमें लिखा था :-"चूकि खिलाफत के मामले में भारत सरकार तथा ब्रिटिश सरकार ने भारतीय