करे और प्रत्येक नागरिकका यह भी नैसर्गिक अधिकार है कि सैनिक या गैर-सैनिक सरकारी नौकरोंसे खुलकर ऐसी सर.
कारसे सम्बन्ध तोड़नेके लिये अनुरोध करे जो भारतकी जनता.
के एक बहुत बड़े अंशका साहाय्य तथा विश्वास खो बैठी है।"
कमेटीने कार्य समितिके वैदेशिक नीति सम्बन्धी प्रस्तावका भी
समर्थन किया।
१९२१ की अन्तिम बैठक २४ दिसम्बरको हुई। इसमें श्री
चित्तरञ्जनदासके स्थानमें, जो उस समय हवालातमें थे, हकीम
अजमल खां कांग्रेसके स्थानापन्न सभापति चुने गये।
स्वयंसेवक संस्थाका केन्द्रीभूत किया जाना ।
कार्य समितिके निश्चयोंका विशेष उल्लेख नहीं किया
गया है, क्योंकि सभी महत्वपूर्ण बातोंमें सर्व भारतीय कांग्रेस
कमेटीने उनका समर्थन किया। २२ और २३ नवम्बरको
बम्बईमें कार्यसमितिकी जो बैठक हुई उनका महत्व विशेष है।
दो ही चार दिन पहिले बङ्गाल, संयुक्त प्रांत और पञ्जाबमें क्रिमि-
नल ला अमेण्डमेण्ट ऐक्ट लगाया गया था। समितिने अपने
५ संख्याके प्रस्ताव द्वारा यह निश्चय किया कि सभी तत्कालीन
स्वयंसेवक संस्खाये एक केन्द्रीय शासनके अधीन कर ली जाय ।
यह निश्चय सरकारकी चुनौतीका उत्तर था। इसके बाद निरं.
कुश दमन आरम्भ हुआ।
असहयोगके आरम्भसे अहमदाबाद कांग्रेसतकके इतिहास-
के दिग्दर्शन करानेमें सरकारके भाव और उसकी चलायी दमन