को वह हार खानी पड़ी और हमलोगों का तुमलोग कुछ भीन कर सके; लेकिन, अय बहादुर। हमारे थोड़े से सिपाही आख़िर करही क्या सकते थे! चुनांचे जब कई शिकस्त के बाद तुमने उन पर फ़तहयाबी पाई तो मेरे वालिद अपने वफ़ादार बहादों के साथ इस मुकाम को छोड़ कर दूसरे अड्डे पर चले गए हैं।"
उस सुन्दरी की इस विचित्र बात को सुनकर मेरे अचरज का कोई ठिकाना न रहा, इसलिये मैंने पूछा,--"ऐं! उस दिन जो हमारी ओर के तीनों सिपाही मारे गए, यह क्या तुम्हारे केवल अरसी सिपाहियों काही काम था?"
उस सुंदरी ने कहा,-" हां, सिर्फ अस्सी सिपाही थे। लेकिन इससे तुम इतना ताज्जुब क्यों करते हो! याद रखो कि हमारे अफ़रीदी जवान तुमसे कम बहादुर व लड़ाक नहीं हैं और उनकी बंदूकों की गोलियां कभी निशाना चूकती ही नहीं। लेकिन अगर कोई अफ़सोस का मुकाम है तो सिर्फ यही है कि वे तुमलोगों के मुकाबले गिनती में कम हैं। तो भी अफ़रीदी अपनी हुकूमत और आज़ादी की हिफाज़त के लिये अपनी जान की कुछ भी पर्वा नहीं करते। बस, उनका अगर कुसूर है तो यही है कि गिनती में कम होने के सबब वे तुम्हारे सामने होकर नहीं लड़ सकते।"
मैंने कहा,-"तो फिर वे अंगरेजों की आधीनता क्यों नहीं स्वीकार करते?"
उस सुंदरी ने इसका जवाब बड़ी कड़ाई के साथ दिया, उसने कहा,-" क्या कहूं, अगर अफ़रीदी हिन्दुस्तानियों की तरह कभी गुलामी किए होते ता बेशक वे अपनी आज़ादी अंगरज़ों के हाथ बेच देते, लेकिन इनसे ऐसा होना गैरमुमकिन है। जब तक एक अफरीदी भी जीता रहेगा, वह हर्गिज़ किसीकी गुलामी या मातहती कबूल न करेगा। अय, नेकबख्त, बहादुर! बड़े अफसोस का मुकाम है कि तुम्हारे पाजी गोर्खे सिपाहियों ने मुझपर चोरी से छापा मारा, अगर वे सामने से आकर मुझपर जुल्म करने की नीयत करते तो यही छुरी (दिखला कर) पारी पारी से उन सब कंबख्तों के कलेजे के पार तक की खबर लेआती और लोगों को यह दिखला देती कि अफरीदी औरतों के नाजुक हाथ भी वक्त पड़ने पर इस कड़ाई के साथ दुश्मनों के कलेजे का खून पी सकते हैं।"