ओफ़! उस भयंकर छुरे को देखकर मेरा वीरहृदय भी कांप उठा! किन्तु उस छुरे से उस सुंदरी के नेत्रों की तीक्ष्णता कहीं बढ़ी चड़ी थी। अहा! उस संध्या के डमड़ते हुए अंधेरे में, उस सूनसान पार्वतीय बन में, उस पठानकुमारी के सुंदर मुख से जो बारंबार क्रोध, क्षोभ, मनस्ताप, और वीरत्वव्यजक भाव प्रगट होते थे, उनसे उस सुंदरी की सुंदरता की शोभा और भी बढ़रही थी; और यही प्रतीत होता था कि मानो आकाश से कोई अप्सरा उतर आई हो या वन देवी बन में से निकलकर पर्वत की उपत्यका में नृत्य कर रही हो!
अस्तु, थोड़ी देर चुप रहकर मैंने पुनः कहा,-"सुन्दरी! अंगरेज़ी गवर्नमेन्ट की यह इच्छा कदापि नहीं है कि किसी निस्सहाय स्त्री का अपमान किया जाय! हमलोगों की यदि शत्रुता है, तो केवल अफरीदी पुरुषों के साथ है, न कि उनकी स्त्रियों के साथ, इसलिये अब तुम अपनी इच्छा के अनुसार जहां चाहो, जा सकती हो। और यदि मुझसे तुम्हारा कोई काम बन पड़े तो बिना संकोच कहो; मैं, जहांतक मुझसे होसकगा, तुम्हारा काम कर दूंगा।"
यह सुनकर उस सुंदरी ने बड़ी नम्रता से कहा,-"आह! आपकी इस मिहरबानी को में ताज़ीस्त न भलूंगी। आज आपने जैसी भलाई मेरे साथ की है। वह क्या कभी भूल सकती है! इसलिये अब मैं अपने वालिद के पास जाऊंगी। मेरी मां नहीं हैं, सिर्फ मेरे वालिद ही हैं और एक मेरी बहन है। हम दोनों बहन साथही पैदा हुई थीं, और लोग कहते हैं कि हम दोनो को जनतेही मेरी मां विहिश्त को चली गई थीं। तब से मेरे वालिद ने फिर दूसरी शादी न की और हम दोनो बहिनों की पर्वरिश इस तरह की कि जिसमें हम दोनों को कभी मां के लिये तरसना न पड़े।"
उस सुंदरी के निष्कपट भाव को देख कर मैं बहुत ही प्रसन्न हुआ और मैंने कहा,-'सुन्दरी! मैं एक बात जानना चाहता हूं, क्या तुम कृपा करके उसे बतलाओगी?".
उस सुंदरी ने कहा, मैं बेशक बतला दूंगी, अगर यह बात मुल्क और आज़ादी से ताल्लुक न रखती हो।"
मैने कहा,-"नहीं; मैं केवल तुम्हारा नाम जानना चाहता हूं!"
उस सुंदरी ने कहा,-"आह! यह तो एक महज़ मामूली बात है: मुझे लोग हमीदा कहते हैं।"