पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/१४

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याक़ूतीतख़्ती


यों कह कर उसने मुझसे फिर आंखें मिलाई और तुरंत (आंखें) नीची करली! अहा! उस मिलाप में विद्युच्छटा की ऐसी अपूर्व माधुरी थी कि जिसका रसास्वाद मैं जिह्वा से नहीं कह सकता! अस्तु, मैंने उस नेत्र-चापल्य पर उस समय विशेष ध्यान नहीं दिया और हमीदा से बिदा होना चाहा; इतने ही में उसके अनुचर अबदुल् ने कहा,

"हुजूर! आपकी फ़ौज के सिपाही हर चहार तरफ़ घूमरहे हैं, इससे मुमकिन है कि रास्ते में फिर मेरी किसीसे मुठभेड़ होजाय और बीबी हमीदा पर कुछ आंच पहुंचे, वैसी हालत में मैं अकेला अपने मालिक की दख्तर की हिफ़ाज़त क्योंकर कर सकूँगा?"

मैं क्या कापुरुष था कि पास शस्त्र के रहते भी अबदुल् की ऐसी बात सुन कर चुप रह जाता! सो मैंने कहा.-"मेरे साथ रहने पर किसीकी भी इतनी सामर्थ्य नहीं है कि स्त्री की ओर आंख उठाकर देख सके! इसलिये चलो, मैं हमीदा को निरापद स्थान तक पहुंचा दूँ।"

इस पर हमीदा ने कहा,-"मैं यह नहीं चाहती कि आप मेरे बास्ते ज़ियादह तर तकलीफ़ उठावें। फिर आप आज़ाद भी तो नहीं हैं! ऐसी हालत में आप अपने अफ़सर को अपनी गैरहाज़िरी का क्या सबब बतलाएंगे? क्या आप उनसे यह कहेंगे कि,-'मैं अपने दुश्मन अफरीदी सदार की लड़की के साथ गया था!' ऐसा करने से क्या आप अपने अफ़सर के सामने सज़ावार नहीं हो सकते! इसलिये ऐसा मैं नहीं चाहती कि आप पर मेरे सबब से कुछ आंच पहुंचे! चुनांचे अब आप अपने पड़ाव को लौट जाइए और यकीन करिए कि मेरे तन में जान रहते, कोई पाजी मेरी बेइज्जती नहीं कर सकता! बनिस्बत आपके, मैं अपनी जान ज़ियादह बेशकीमत नहीं समझती, इसलिये अब मस्लहत यही है कि आप लौट जायं।"

अहा! उस समय उस नारीरत्न पठानकुमारी की बात मैंने जिस भाव में समझी थी, उसे प्रगट करने की शक्ति मुझमें नहीं है; अस्तु अपने कर्त्तव्य को निश्चय करके मैने कहा,-"मेरे लिये तुम तनिक भी न घबराओ, क्यों कि मैने अपने साथियों को पड़ाव की ओर भेज दिया है, ऐसी अवस्था में यदि मैं आज न पहुंच कर कल अपनी छावनी पर जाऊं, तो कुछ भी जवाबदेही मेरे लिये न होगी। इसलिये, सुन्दरी चलो, तुम्हे निरापद स्थान में पहुंचा कर कल मैं अपने पड़ाव की और लौट जाऊंगा; क्योंकि ऐसा मुझसे कभी न होगा कि मैं तुम्हें