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पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/२

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(आप पढ़िए और अपने मित्रों को भी दिखलाइए)
उपन्यास मासिकपुस्तक।

हिन्दी भाषा के प्रेमियों को विदित हो कि "उपन्यास" नामक एक "मासिकपुस्तक" पहली जनवरी, १९०१ ईस्वी से बराबर आज तक निकलती चली जाती है। इसका आकार 'डिमाई आठपेजी पांचफार्म, अर्थात ४० पृष्ठ है, और इसमें हर महीने नवीन उपन्यास के ४० पृष्ठ रहा करते हैं। एक उपन्यास के पूरे होने पर दूसरा नवीन उपन्यास प्रारंभ कर दिया जाता है और कभी कभी दो दो उपन्यास एक साथही छपा करते हैं। इसका दाम भी बहुत नहीं है, सर्वसाधारण से केवल दो रुपए साल लिये जाते हैं और डांकमहसूल किसीसे कुछ नहीं लिया जाता। हां, राजे महाराजे, अमीर, सेठ, साहूकार आदि धनिक अपनी शक्ति के अनुसार जो कुछ इसकी सहायतार्थ द्रव्य भेजते हैं, वह धन्यवाद सहित स्वीकार किया जाता है और उनका नाम सहायकों में छाप दिया जाता है।

जिन उपन्यास-प्रेमियों को इस "मासिकपुस्तक" का ग्राहक होना हो, वे शीघ्रही दो रुपए भेजकर ग्राहक बन जायं, और जो सज्जन 'नमूना' देखना चाहें, उन्हें चाहिए कि नमूने के लिये 'चारआने' का टिकट भेजें। हां, इतना ध्यान रहेगा कि जो लोग चारआने भेजकर नमना मंगावेंगे, वे यदि पीछे से ग्राहक होजायंगे दो उनसे चार आने मुजरे देकर केवल पौनेदो रुपएही लिये जायंगे। वी.पी. का खर्च, एक आना, ग्राहकों को ही देना पड़ेगा। हां, डांकमहसूल किसीसे कुछ भी नहीं लिया जायगा।

यह "गुलबहार" उपन्यास, तथा लीलावती, राजकुमारी, स्वर्गीय-कुसुम, चपला, तारा, रज़ीयाबेगम, मल्लिकादेवी, हृदयहारिणी, लवङ्गलता, तरुणतपस्विनी, आदि परमोत्तम और प्रशंसित उपन्यास इसी सुप्रसिद्ध "उपन्यास" नामक मासिकपुस्तक में ही छपकर हिन्दीरसिकों के गले के हार होरहे हैं। अतएव जो हिन्दी जानते हैं, जिन्हें अपनी मातृभाषा हिन्दी से कुछभी अनुराग है और जो हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा हिन्दी का कुछभी उपकार करना अपना धर्म समझते हैं, उन सज्जनों को चाहिए के इस "उपन्यास" मासिक पुस्तक के ग्राहक बनकर हमारे उत्साह को बढ़ावें और अपनी मातृभाषा हिन्दी के उद्धार करने में कटिबद्ध होवें। आप जो इस "गुलबहार" उपन्यास वाला "उपन्यास"—मासिकपुस्तक का नंबर देख रहे हैं, बस, इसीको उक्त "उपन्यास" मासिक पुस्तक का नमूना समझिए और झटपट आपभी ग्राहक बनिए और अपने मित्रों को भी ग्राहक बनाइए।

श्रीकिशोरीलालगोस्वामी,

संपादक "उपन्यास" मासिकपुस्तक, काशी।