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पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/२२

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(२०)
[तीसरा
याक़ूतीतख़्ती


म बिना लाठी के सहारे इस दुरारोह पार्वतीय मार्ग में चलूंगा, क्यों कर!"

इस पर एक व्यक्ति ने कहा,-'सुनिए, एक बेत के दौरे में आपको बैठाकर उससे आपको डोरियों से बांध देंगे। फिर आपकी आंखों पर पट्टी बांध कर दो अफरीदी उसे डोली की तरह उठाकर अपने सार के पास लेचलेंगे। बाकी सिपाही इसलिये आगे पीछे और अगल बगल साथ रहेंगे कि जिसमें आप अगर भागने का ज़रा भी इरादा करें तो फौरन आपकी खोपड़ी उड़ा दी जाय।"

उनकी इस सतर्कता के वृत्तान्त को सुनकर उस अवस्था में भी मुझे हंसी आई और मैंने कहा,-'अस्तु, जो कुछ तुमलोगों ने बिचारा हो, या जैसा हुक्म तुम्हें तुम्हारे दुराचारी सदीर ने दिया हो, तुम लोग वैसा ही करो,--लेकिन इतना तो सोचो कि पास शस्त्र न रहने और यहां के पहाड़ी रास्ते का हाल न जानने के कारण मैं भला, भागने का विचार किस बिरते पर करूंगा?"

वह अफरीदी बोला,-"खैर, इन हुज्जतों से हमें कोई मतलब नहीं है।"

यह कहकर वह एक बड़े से बेत के दौरे को लेआया, जो बड़े भारी डोल की सूरत का बहुत ही दृढ़ बना हुआ था और उसमें ऊपर की ओर बांस लगाने के लिये दो बड़े मजबूत लोहे के गोल कड़े लगे हुए थे। निदान, कई अफरीदियों ने मुझे उठाकर उसी बेत के झांपे में बैठा कर मेरी आंखों पर पट्टी बांधदी और तब आंख रहते भी मैं पूरा अंधा बन गया।

फिर मुझे केवल यही जान पड़ने लगा कि मुझे दो, या चार अफ़रीदी उठाकर पहाड़ की चढ़ाई और उतराई को लांघते हुए बड़ी तेज़ी के साथ किसी ओर को जारहे हैं। उस समय वे सबके सब चुपचाप थे।

दोपहर ढलते ढलते वे सब एक पहाड़ी झरने के पास पहुंच कर उहर गए और मुझे उस झापे में से निकाल और हाथ पैर तथा आंखों को खोलकर उनमें से एक ने कहा,-"साहब! अगर इस मुकाम पर आपको हाथमुंह धोना कुछ जलपान करना, या कुछ नाश्ता वाश्ता करना हो तो कर लीजिए, क्योंकि दो घंटे आराम करके फ़िर हमलोग यहांसे कूच करेंगे और शाम होने से पेश्तर ही अपने सार के पास पहुंच जायंगे।"