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पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/३९

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परिच्छेद]
(३७)
यमज-सहोदरा


तेरा नाम क्या है? क्योंकि तेरी पोशाक देखकर मुझे ऐसा जान पड़ता है कि शायद तू सिक्खरेजीमेन्ट का सिपाही होगा!"

यह सुनकर और खबतन कर मैंने वीरताव्यंजक शब्दों में कहा,-"सर्दार मेहरखां। मैं अन्यायपूर्वक तेरे हाथों बंदी हुआ हूं, अतएव मैं उस दंड की प्रतीक्षा करता हूं, जो कि तू मुझे दिया चाहता है। बस, इसके अतिरिक्त इस समय नाम, धाम, पेशा, मज़हब, या जातपांत के पछने की या उनके कहने की मैं कोई आवश्यकता नहीं समझता।"

कदाचित मेहरखां ने अपने प्रष्ण का ऐसा मुहंतोड़ उत्तर कभी न पाया होगा! और कदाचित उसने मुझसे ऐसे उत्तर पाने की कभी कल्पना भी न की होगी। सो मेरे कड़े जवाब को सुनकर वह मारे क्रोध के भभक उठा और कड़क कर बोला,-"बेवकूफ़, काफिर! तेरे इस बेहूदगी के जवाब से तेरा ही नुकसान होगा, इसलिये शाहदिरबार में कैदी को जिस नर्मी के साथ जवाब सवाल करना चाहिए, इसे तुझे ज़रूर जान लेना चाहिए।'

किन्तु उस अफरीदी सरदार के इस कहने से मैं बिचलित न हुआ और मैने भी उसी प्रकार कड़क कर कहा,-" मेहरखां! असभ्य अफ़रीदी पठान को मैं अपना राजा नहीं समझता, और साथही इसके, राजाओं के आगे कैसे शिष्टाचार की आवश्यकता होती है, इसे मैं भली भांति जानता हूं।"

मैंने समझा कि मेरे इस उत्तर से सरदार और भी तमतमा उठा, पर उसने अपने उमड़ते हुए क्रोध को भीतरही भीतर रोक कर कर्कश स्बर से कहा,-" काफ़िर! क्रिस्तानों के कदमों की धूल से जिनका माथा भर रहा है, उन्हें इतनी शेखी के साथ तनकर ऐसा जवाब सवाल न करना चाहिए। तू अभी निरा छोकड़ा है, इसलिये लड़कों की तरह जवाब सवाल कर रहा है, लेकिन, ऐसा करना तुझे फबता नहीं। क्या तू इस तवारीखी बात को बिल्कुल भूल गया कि इन्हीं 'असभ्य' पठानों के हाथ से तेरी ज़ात(सिक्खों) को कितनी मर्तवः बेइज्जत होना पड़ा है और कितनी दफ़ा उन्हें पंजाब को छोड़ कर इधर उधर जंगल पहाड़ों में भाग कर अपनी जान बचानी पड़ी है! आज तू उसी (असभ्य) पठान ज़ात के सरदार के सामने कैदी की हैसियत से खड़ा किया गया है, पस, तुझे लाज़िम है कि तू अब सम्हल कर मेरे सवालों का जवाब देगा।"