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पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/४०

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(३८)
[पांचवां
याक़ूतीतख़्ती


मैंने उसकी इन बातों का कुछ भी जवाब न दिया, तब वह फिर कहने लगा,-"क्या तू यह जानता है कि तू किस कसूर में गिरफ्तार हो कर यहां लाया गया है?"

“मैने निडर हो कर कड़ाई के साथ कहा,-"हां, यह मैं भली भांति जानता हूं कि मैंने गोर्खे सिपाहियों के हाथ से जो अफरीदी सरदार की लड़की की आबरू बचाई है और उन्हीं गोरों की पैनी छुरी से एक एहसानफ़रामोश, पाजी अफरीदी युवक की जान बचाई, है, बस, इसी अपराध में में बंदी करके यहां लाया गया हूं। निस्सन्देह, मेरा अपराध बड़ा भारी है। यदि ऐसी भलाई में असभ्य अफरीदी जाति के साथ न करता तो वह मेरे साथ ऐसे प्रत्युपकार की व्यवस्था किसलिये करता! सच है, नीचों के साथ भलाई करने का नतीजा ऐसा ही निकलता है।"

मेरी बातें सुनकर मेहरखांकुछ देरतक चुप रहा फिर वह कहने लगा,"सुन काफ़िर! आज मुझे यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि अगरीदियों के बनिस्वत हिन्दुस्तानी लोग ज़बांदराजी में बड़े बहादुर होते हैं। लेकिन हमलोग बातों के बदले मैदान में,-लड़ाई के मैदान में बहादुरी दिखलाना मनासिब समझते हैं। खैर, तू अपने ख़ुदा का शुक्रिया अदा कर कि ऐसे बेहूदः जवाब सवाल करने पर भी अभी तक मेरे धड़ पर सर कायम है!

"सुन, काफ़िर, जवान! तुम लोगों ने नाहक हमारे मुल्क में आकर लड़ाई का डंका बजाया, नाहक हमारे सैकड़ों बहादुरों की जानेली और नाहक इस बेहूदा सर्कशी करने पर तुम उतारू हुए, क्या तुम अफ़रीदियों को बिल्कुलही नाचीज़ व पस्तहिम्मत समझते हो कि जिसके सबबवे तुम्हारी इस शरारत का बदला न चुका सकेंगे! मगर खैर तुझ जैसे एक नाचीज़ कीड़े के मारने से मुझे क्या हासिल होगा। इसलिये दुश्मन आनकर भी मैं तेरी आन का ख्वाहां नहीं हूं, लेकिन सिपहगरी के घमंड से लड़ने आकर जो तूने मेरी दुख्तर की याकूती तख्ती चुराई, तेरा यह कसूर कभी मुआंफ़ नहीं किया जा सकता। पस, तू इस कसूर के एवज़ में मुनासिब सज़ा भोगने के लिये तैयार हो।"

यह सुनकर मैने बिल्कुल लापरवाही के साथ कहा,-"सुन मेहरखां! बिना अपराध भी मैं, उस दंड के भोगने के लिये तैयार हूं, जिसे तुम जैसे नालायक मुझ जैसे निरपराधियों को दिया करते हैं। क्योंकि तुझ