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याक़ूतीतख़्ती



घरस दिन बाद ही वह स्त्री मर गई थी।

उसके बाद ही प्रथम मेरी माता का, और फिर पिता का देहान्त हो गया और इन्हीं कारणों से मेरा पुनर्विवाह अभीतक न हो सका।

मैं ब्राह्म-मतावलम्बी हूं, और मेरे पिता भी इसी मत पर विश्यास करते थे। सो ब्राह्मभ्राता और ब्राह्मभगिनीजनों ने अपने कुचक्र में फंसाकर मुझे बिगाड़ने पर कमर बांधी और मैं भी कुछ बिगड़ चला तथा अपने कुछ धन को भी मैंने बर्बाद किया; किन्तु जगदीश्वर ने मुझे उस कुचक्र तथा कुचक्रिया से बहुतही बचाया।

बात यह है कि उन दिनों, जिन दिनों का हाल मैं यहां पर लिखरहा हूं, अपनी ज़िमीदारी के एक मुकद्दमे के कारण कलकत्ते में रहता था। कई ब्राह्मभ्राताओं ने मिल कर मुझे सब्ज़बाग दिखलाना प्रारंभ किया और विलासिनी नाम की एक रूप और यौवन सम्पन्त ब्राह्मभगिनी से मुझे परिचित किया। फिर तो मैं यौवन, धन, सम्पत्ति और प्रभुत्व के मद से मदान्ध होकर बिलासिनी की विलासिता में ऐसा डूबा कि मुझे दीन दुनियां की कुछ भी खबर न रही और उसी अवस्था में डूबे रहने के कारण अदम पैरबी में मेरा अस्सी हज़ार का वह मुकद्दमा भी चौपट होगया; पर उस समय मुझे उसका कुछ भी खद न हुआ।

केवल इस मुकद्दमे में ही मेरे सवालाख रुपए खर्च नहीं होगए थे, बरन ब्राह्मभगिनी विलासिनी, तथा ब्राह्मभ्राताओं की परिचर्या में भी मेरे एक लाख रुपए केवल उन्नीस महीने ही में नष्ट होगए थे! कदाचित मैं बिलकुल कंगाल होगया होता और मेरी सारी सम्पत्तिको ब्राह्मभगिनी तथा ब्राह्मभ्रातागण आत्मसात् कर गए होते; किन्तु जगदीश्वर की अनन्त दया के कारण एक ऐसी घटना घटी कि मैं उससे बिल्कुल चैतन्य होगया और मेरा सारा मद उतर गया!

वह बात यही थी कि एक दिन मैंने विलासिनी को मल्लिकघराने के एक नवयुवक के साथ असत रसालाप करते देखा और फिर छिपकर उन दोनो के व्यभिचार को भी प्रत्यक्ष देखा। बस, वह एक ऐसी भयंकर घटना थी कि उसने मेरे सारे नशे को बात की बात में मिट्टी कर दिया और मैं चैतन्य होकर उसी दिन कलकत्ते का मुहं काला करके अपने घर, मुर्शिदाबाद चला गया।

घर आकर मैंने अपनी ज़िमीदारी के काम काज को देखना प्रारंभ किया और कागंज़ के देखने से यह बातभी मैंने जानी कि उन्नीस महीने