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[पांचवां
याक़ूतीतख़्ती


वीरों की तल्वारे झनझनाहट के साथ म्यान से निकल पड़ी, मेरे हृदय का भी रुधिर उष्ण होकर बड़ी तेजी के साथ नाड़ियों में दौड़ने लगा और रक्षकों ने मर्यादा से सिर झुकाकर हमीदा के लिये रास्ता छोड़ दिया। मैं पास ही खड़ाथा, सो मैंने बड़े आदर की दृष्टि से उस निर्भीकहृदया महिमाल्विता पठानकुमारी का स्वागत किया और उसके संकोचहीन भाव तथा अकुंठित गति को मैं देखने लगा।

गतरात्रि को जिस भेस में हमीदा मुझसे कारागार में मिली थी, इस समय भी वह उसी भेस में थी। किन्तु इस समय उसके नेत्रो में नारीजनोचित कोमलता तथा स्त्रीजनोचित करुण भाव न था, बरन उनके बदले में स्पष्ट प्रणा अटल प्रतिज्ञा, उद्धत दर्प और अम्लान तेजस्विता मेघान्तरित मध्यान्हमार्तण्ड की भांति उसके नेत्र और मुख से टपकी पड़ती थीं। अहा! उस समय न जाने किसी घोर अनिष्ट की आशंका से सारा दरवार विलोड़ित हो उठा था।

हमीदा धीरे धीरे अपने पिता के पास पहुंची और उसके पैर के पास दो जानू बैठ कर असंकुचित भावसे कहने लगी,-'प्यारेवालिद! मैंने अपनी खुशी से इस अजनबी और परदेसी बहादुर को अपनी तख्ती नज़र दी है। इस बात से मैं इन्कार नहीं कर सकती। अगर आज यह बहादुर मेरी तख्ती के चुराने के कलर में गिरफ्तार न किया गया होता तो मैं इस भरे दरवार में कभी न आती और उस तख्ती के ज़िक्र करने की भी कोई ज़रूरत न समझती, इसलिये अगर मेरी इस हर्कत से मेरी या आपकी शान में कुछ फर्क आया हो तो उसके लिये आप मुझे मुआफ़ करेंगे। इसी बहादुर सिपाही ने मेरी आबरू और जान को दश्मनों के हाथ से बचाया है। इसलिये दुनियां में एसी कौन चीज़ है, जो मैं बगैर तअम्मुल किए इसे नहीं देखकती! आह! ऐसी नेकी करने बाला यह बहादुर जवान चोर है, यह बात जो नालायक अफरीदी अपनी नापाक ज़बान से निकाल सकता है, उसे फौरन अफरीदी सिवाने के बाहर कर देना चाहिए। मैं जानती हूं कि ऐसी झूठी, गंदी और बे बुनियाद बात का फैलाने वाला नालायक कौन है! वह बदजात अबदुल है और इसी कमीने ने ऐसी वाहियात बात फैलाकर इस बेकसूर बहादुर को नाहक फंसाया है। आप अपने प्यारे गुलाम अबदुल से पछिए कि गोखों के भयानक छरे से इस कंबख्त की जान किसने बचाई! अफ़सोस, कमीना अबदुल सिर्फ झूठा ही नहीं है, बल्कि वह