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पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/४१

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परिच्छेद]
(३९)
यमज-सहोदरा


से मैं अपने छुटकारे की आशा नहीं करता, क्योंकि यह मैं भली भांति जानता हूं कि तुझ जैसे दुरात्माओं के पास छल की कमी नहीं रहती, परन्तु यह अपवाद, कि मैंने किसीकी कोई वस्तु चुराई है, मैं नहीं सह सकता। चोरी करनी सिक्ख जाति का धर्म नहीं है; इसलिये तू बतला कि तेरी लड़की की तख्ती चुराने का झूठा अपवाद मुझे कौन लगाता है?"

यह सुनकर सरदार ने जोर से पुकारा-'अबदुल्!' जिसे सुनते ही वही बदज़ात, पाजी अबदुल् दरबार में आया और ज़मीन चूमता हुआ सरदार के सामने जाखड़ा हुआ। तब सरदार मेहरखां ने कुछ कड़ाई के साथ उसले कहा,-"इस कैदी ने हमीदा की याकूतीतख्ती चुराई है, इस बारे में तू क्या जानता है, बयान कर।"

यह सुनकर कांपते हुए गले ले अबदुल कहने लगा,-"मैंने इस कैदी के पास वह तख्ती देखी है, इसलिए मैं समझता हूं कि इसने किसी ढब से उस तख्ती को चुरा ली है। क्योंकि इस बात का तो कभी यकीन किया ही नहीं जासकता कि एक काफिर और अपने मुल्क के दुश्मन को दुख्तर-ई-लर अपनी तख्ती मुहब्बत की निशानी के तौर पर दे डालेगी।"

"मैने ज़रूर अपनी बेशकीमत याकूतीतख्ती इस बहादुर जवान को दी है। जिस बहादुर नौजवान ने मेरी आबरू और जान बचाई, जिसने मुझे उस खखार आफ़त ले बचाकर मेरी हिताजत के लिये सारी रात मेरे साथ रह कर निहायत तकलीफ उठाई, और जिसने मेरे लिये अपने तंई इस बला में फंसाया, अजनवी, रमज़हब और गैरकोम होने पर भी मैंने खुशी से अपनी निशानी इस बहादुर जवान को देडाली। लिहाज़ा, इस आम दरवार में अफरीदी सरदार की लड़की इस बात को खुशी से कबूल करती है कि इसने इस भलाई करनेवाले बहादुर जवान को उसकी नेकियों के एवज़ में निशानी के तौर पर अपनी तख्ती का देडालना गैरमुनासिब नहीं समझा। पल, जो लोग इस नेक जवान को तख्ती के चुराने का इल्ज़ाम लगाते हैं, वे सिर्फ झूठही नहीं बोलते, बलिक इन्सानियत के खिलाफ सर उठाते हैं।"

इस आवाज़ के सुनते ही सार दरबार की नज़र उधर ही खिंच गई, जिधर से यह आवाज़ आई थी, और सभी ने आश्चर्य से देखा कि उपर्युक्त बात के कहनेवाली स्वयं हमीदा ही थी। यह देखतेही अफरीदी