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पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/६६

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(६४)
[दसवां
याक़ूतीतख़्ती


को मरुभामि बना डालेगी, इसका अब तक मुझे ध्यान ही न था। सो उसके एकाएक ऐसा कहने से मैं चिहुंक उठा और एक ठंढी सांस भर कर मैंने कहा,-"प्यारी, हमीदा! क्या तुम इतनी जल्दी मुझे छोड़ दोगी?"

यह सुनकर हमीदा ने एक गहरी सांस ली और कहा,-'क्या करूं, मज़बूरी है। लेकिन खैर, अगर तुम कभी कभी मुझे याद कर लोगे तो, चाहे मैं कहीं रहूं, मेरी रूह ज़रूर आसूदः होजाया करेगी।"

मैंने अपना कलेजा मसोस कर कहा,-"प्यारी, हमीदा! मेरे कंधे के घाव का निशान, जोकि जन्मभर न मिटेगा, तुम्हारी बराबर याद दिलाया करेगा।"

यह सुन कर हमीदा हंस पड़ी और बोली- 'आह, तो क्या मेरी यादगारी की सिर्फ इतनी ही कीतम है! अफ़सोस! मगर खैर, यह तो कहो कि अब जखम में दर्द तो नहीं होता?"

मैंने कहा,- "नहीं, अब दर्द बहुतही कम है, जो दो चार दिन में ही छूट जायगा, परन्तु बीबी हमीदा, यह तो कहो कि तुमने मुझे जल्लादों के हाथ से क्यों कर बचाया?"

हमीदा,-"आह! यह सवाल तो तुम सैकड़ों मर्तब कर चुके हो।"

मैंने कहा,-"परन्तु अब इसे अन्तिम प्रष्ण ही समझो, इसलिये इस रहस्य को अब मुझपर कृपा कर प्रगट कर दो।"

हमीदा,-"खैर, अगर ऐसी ही तुम्हारी मर्जी है तो सुनो। वालिद ने मुझपर भी कड़ा पहरा बैठा दिया था, इसलिये मैं फिर तुमसे मिल नहीं सकी थी, परमैं तुम्हें भूली नथी। सोजब तुम्हारे मार डालने के वास्ते तीन जल्लाद मुकर्रर किये गए, जिनमें एक अबदुल भी था, तो मैंने बहुतसी अशर्फियां देकर दो जल्लादों को अपने काबू में कर लिया, पर अबदुल से मैंने कुछ भी बात न की, इस ख़याल से कि, कहीं मेरी बंदिश ज़ाहिर न हो जाय। सो उन दोनो जल्लादों की बंदूकों में गोलियां न थीं, सिर्फ अबदुल की बंदूक की गोली तुम्हारे कंधे में लगी, जिसके लगतेही तुम बेहोश होकर वहीं गिर गए। तब अबदुल ने तुम्हे मरा समझ कर उन दोनो से कहा कि,-'इस मुर्दे को कहीं पर फेंक दो और इसके गले में से याकूतीतख्ती उतार कर मेरे हवाले करो।" यों कह कर जब वह कंबख्त चला गया तो वे दोनो जल्लाद तुम्हें उठाकर मेरे पास ले आए और अबदुल से उन्होंने यह कह