पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परिच्छेद]
(५)
यमज-सहोदरा



मैने कहा,-" यह तुम्हारा प्रष्ण निर्मल है! क्योंकि यद्यपि मैं अबतक एक प्रकार से अविवाहित या परिणीता भार्या से रहित हूं, तथापि 'विलासिनी' के संसर्ग से जो कुछ प्रेम का तत्व मैंने जाना, उसका हाल तो मैं तुमसे कही चुका हूं!"

यह सुन निहालसिंह ने सिंह को तरह गरज कर कहा,-"छिः! विलासिनी से जो कुछ तुमने सीखा, वह प्रेम नहीं, बरन गरल है! तुम निश्चय जानो कि यदि वेश्याओं, कुलटाओं, और पुंश्चलियों ही के पास प्रेम-वास्तविक प्रेम हो तो फिर स्नेहमयी परिणीता भार्या की आवश्यकता ही न रहजाय।"

मैने कहा,-" यह तुम्हारा कहना बिल्कुल सही है, परन्तु क्या वेश्या, या कुलटा बिलकुलही प्रेमशन्य होती है?

निहालसिंह ने कहा,-"यदि उनमें तुम्हारे कहने से कुछ प्रेम का अंश मैं मान भी लूं, तौभी वह 'प्रेम, विशुद्ध और स्वर्गीय प्रेम कदापि नहीं कहा जा सकता।"

मैंने कहा,-" यदि तुम्हारा मतमाना जाय तो साहित्यशास्त्र की परकीया और सामान्या नायिका के प्रेम पर हरताल ही लगाना पड़े!"

निहालसिंह ने कहा,-" तुम अपनी बुद्धि पर लगी हुई हरताल को तो पहिले धो डालो! तुम यदि स्वयं कुछ भी साहित्य जानते हो तो स्वयं इसका निर्णय कर लो कि स्वीया, परकिया और सामान्या नायिकाओं में विशुद्ध और आदर्श प्रेम की आधार कौन नायिका होती हैं!"

मैने कहा:-" मेरे जान, परकीया!"

निहालसिंहा-"कदाचित तुम ऐसा ही समझो, या कदाचित ऐसा ही हो भी; परन्तु मेरे जान तो जसा प्रेम सती साध्वी, स्वीया नायिका कर सकती हैं, वैसा दूसरी से कदाचित नहीं प्राप्त हो सकता।"

मैंने कहा,-"अच्छा, इस विषय में तुमसे फिर किसी समय बिवाद करूंगा और यदि हो सका तो तुमसे एक बार नायिकाभेद भी अवश्य पढूंगा, परन्तु इस समय तुम यह तो बतलाओ कि तुमने अब तक कोई “स्वीया" नायिका के प्रेम का रसास्वाद पाया है, या नहीं!"

यह सुन, निहालसिंह अपने हाथ पर हाथ मार कर खूब ज़ोर से हंस पड़े और कहने लगे,-

"तुम्हारे इस बिलक्षण प्रष्ण के उत्तर में मुझे आज अपनी जीवनी