पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/२१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०४
योगावाशिष्ठ।

चली और अन्तवाहक शरीर से आकाशमार्ग को उड़ीं। जाते जाते ब्रह्माण्ड की बाट को लाँघ गई तब विदूरथ के सङ्कल्प में जगत् को देखा। जैसे तालाब में सेवार होती है वैसे ही उन्होंने जगत् को देखा। सप्तद्वीप; नवखण्ड, सुमेरुपर्वत, द्वीपादिक सब रचना देखी और उसमें जम्बूद्वीप और भरतखण्ड और उसमें विदूरथ राजा का मण्डपस्थान देखती भई। वहीं उन्होंने राजा सिद्ध को भी देखा कि राजा विदूरथ की पृथ्वी की कुछ हद उसके भाइयों ने दवाई थी और उसके लिये सेना भेजी। राजा विदूरथ ने सुन के सेना भेजी और दोनों सेना मिलके युद्ध करने लगीं। फिर उन्होंने देखा कि त्रिलोकी युद्ध का कौतुक देखने को आई है; देवता विमानों पर आरूढ़ और सिद्ध, चारण, गन्धर्व और विद्याधर शाखों को छोड़ देखने को स्थित भये हैं। विद्याधरी और अप्सरा भी आई हैं कि जो शूरमा युद्ध में प्राणों को त्यागेंगे हम उनको स्वर्ग में ले जावेंगी। रक्त और मांस भोजन करने को भूत, राक्षस, पिशाच, योगिनियाँ भी आन स्थित भई हैं। हे रामजी! शूर पुरुष तो स्वर्ग के भूषण हैं और अक्षयस्वर्ग को भोगेंगे और जिनका मरना धर्मपक्ष से संग्राम में होगा वह भी स्वर्ग को जायेंगे। इतना सुन रामजी ने पूछा, हे भगवन्! शूरमा किसको कहते हैं और जो युद्ध करके स्वर्ग को नहीं प्राप्त होते वे कौन हैं? वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! जो शास्त्रयुक्ति से युद्ध नहीं करते और अनर्थरूपी अर्थ के निमित्त युद्ध करते हैं सो नरक को प्राप्त होते हैं और जो धर्म, गौ, ब्राह्मण, मित्र, शरणागत और प्रजा के पालन के निमित्त युद्ध करते हैं वे स्वर्ग के भूषण हैं। वे ही शुरमा कहाते हैं और मरके स्वर्ग में जाते हैं और स्वर्ग में उनका यश बहुत होता है। जो पुरुष धर्म के अर्थ युद्ध करते हैं वे अवश्य स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं और जो अधर्म से युद्ध करते हैं वे मृतक हो नरक को प्राप्त होते हैं। हे रामजी! जो पुरुष कहते हैं कि संग्राम में मरे सब स्वर्ग को प्राप्त होते हैं वे मूर्ख हैं। स्वर्ग को वही जाते हैं जिनका मरना धर्म के अर्थ हुआ है जो किसी भोग के अर्थ युद्ध करते हैं सो नरक को ही प्राप्त होते हैं।

इति श्री यो॰ लीलो॰ गगननगरयुद्धवर्णनन्नाम पञ्चविंशतितमस्सर्गः॥