पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/६७३

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उपशम प्रकरण।

सुनने में आता है वह सब मायामात्र है और मायारूप जगत् भ्रम से भासता है। इस पर एक पूर्व इतिहास हुआ है सो तुम सुनो। हे रामजी! इस पृथ्वी पर कोसल नाम एक देश है जो सुमेरु पर्वतवत् रत्नों से पूर्ण है और जो जो उत्तम पदार्थ हैं वे सब उस देश में हैं। वहाँ गाधि नाम एक ब्राह्मण जो वेदों में प्रवीण-मानो वेद की मूर्ति था-रहता था। बाल्यावस्था से वह वैराग्यादिक गुणों से प्रकाशित भुवनवत् शोभता था। एक समय वह कुछ कार्य मन में धरके तप करने के निमित्त वन में गया और उस वन में एक कमलों से पूर्णताल देख कण्ठपर्यन्त जल में खड़ा होकर तप करने लगा। आठ मास पर्यन्त दिन रात्रि जब जल में खड़ा रहा तो उसके दृढ़ तप को देखकर विष्णु प्रसन्न हुए और जहाँ वह ब्राह्मण तप करता था वहाँ, ज्येष्ठ प्राषाढ़ की तपी पृथ्वी पर मेघवत् आकर कहा, हे ब्राह्मण! जल से बाहर निकल और जो कुछ वाञ्छित फल है वह माँग। तब गाधि ने कहा कि हे भगवन्! असंख्य जीवों के हृदयरूपी कमल के छिद्र में आप भँवरे हैं और त्रिलोकीरूपी कमलों के आप तड़ाग हैं आप ऐसे ईश्वर को मेरा नमस्कार है। हे भगवान्! यही इच्छा मुझको है कि आपकी आश्चर्यरूप माया को, जिससे यह जगत् रचा है, किसी प्रकार देखूँ। तब विष्णुजी ने कहा, हे ब्राह्मण! तुम माया देखोगे और देखकर फिर त्याग भी दोगे। ऐसे कहकर जब विष्णु अन्तर्धान हो गए तब ब्राह्मण वर पाकर आनन्दवान् हुआ और जल से निकला जैसे निर्धन पुरुष धन पाकर आनन्दवान् होता है तैसे ही वह ब्राह्मण वर पाकर आनन्दवान् हुआ। चलते बैठते उसकी सुरति विष्णु के वर की ओर लगी रहे और यही विचारे कि मैं माया कब देखूँगा। एक काल में उसी तालाब पर वह स्नान करने लगा और डुबकी मार मन में अघमर्षणमन्त्र कहने लगा (अघमर्षण पापों के नाश करनेवाले मंत्र को कहते हैं) उस मन्त्र को जपते जपते जब उसका चित्त विपर्यय होकर निकल गया तब वह गायत्री मन्त्र भूल गया और आपको फिर अपने गृह में स्थित देखा। फिर उसने आपको मृतक हुआ देखा और देखा कि सब कुटुम्ब के लोग रुदन करते हैं और शेरार की कान्ति ऐसी जाती रही जैसे टूटे कमलों की शोभा जाती