पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/६७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६७३
उपशम प्रकरण।

मनोराज के भ्रम को देखने को गाधि ब्राह्मण चला और चलता चलता उस देश में जा पहुँचा जैसे ऊँट काँटों को ढूँढ़ता कणटकों के वन में जाता है तैसे ही यह जब चाण्डालों के स्थानों को प्राप्त हुआ तब चाण्डालों के स्थान देखे और जहाँ अपना स्थान था उसको देखा और अपनी खेती लगाने का स्थान देखा कि कुछ बेल खड़ी है और कुछ गिर गई है और पशु के हाड़ चर्म जो अपने हाथ से डाले वे प्रत्यक्ष देखे और आश्चर्य बाद हुआ कि हे देव! क्या आश्चर्य है कि चित्त का भ्रम मैंने प्रत्यक्ष देखा। जो बालक अवस्था में क्रीड़ा करने के और भोजन और मद्य पीने के और पात्र इत्यादिक जो खान पान भोग के स्थान थे वह प्रत्यक्ष देखे और महावैराग्य को प्राप्त हुआ। ग्रामवासी मनुष्यों से भी पूछा कि हे साधो! यहाँ एक चाण्डाल बड़े श्याम शरीरखाला हुआ था तुमको भी कुछ स्मरण है? हे रामजी! जब इस प्रकार ब्राह्मण ने पूछा तब ग्रामवासियों ने कहा, हे ब्राह्मण! यहाँ एक कटजल नाम चाण्डाल क्रम करके बड़ा हुआ, फिर उसका विवाह हुआ और बेटे बेटी परिवार सहित बड़ा कुटुम्बी हुआ। फिर जब वृद्ध हुआ तो दैव संयोग से अकेला कहीं चला गया और जाता जाता क्रान्तदेश में वहाँ के राजा के मरने के कारण वहाँ का राज इसको मिला और आठ वर्ष पर्यन्त राज करता रहा। जब नगरवासियों ने सुना कि यह चाण्डाल है तब वह बहुत शोकवान् हुए और चिता बनाकर जल मरे। इस प्रकार सुनकर गाधि बहुत आश्चर्यवान् हुआ और एकसे सुनकर और से पूछा उसने भी इसी प्रकार कहा। ऐसे बारम्बार लोगों से पूछता रहा और एक मास वहाँ रह फिर आगे चला और नदियाँ, पहाड़, देश, हिमालय पर्वतों की उत्तर दिशा क्रान्त देश में पहुँचा। जिन स्थानों का वृत्तान्त सुना था सो सबही देखे। जहाँ सुन्दर स्त्रियाँ थीं और जहाँ चमर झूलते थे उनको प्रत्यक्ष देखा। फिर नगरवासियों से पूछा कि यहाँ कोई चाण्डाल राजा भी हुआ है, तुमको कुछ स्मरण है तो मुझसे कहो। नगरवासियों ने कहा, हे साधो! यहाँ का राजा मर गया था और मन्त्रियों ने एक हाथी छोड़ा था कि जो कोई मनुष्य इस हाथी के सम्मुख आवे उसको राजा करे। जब वह हाथी चला तब उसके सम्मुख