पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/१९६

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रागवैतालसंवादे वैतालब्रह्मपदप्राप्तिवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (१०७७ ) यह हैं कि, जिस पवनविषे आकाशरूपी अणु उडते हैं, सो पवन कौन है, अरु तीसरा प्रश्न यह हैं कि, केलेके वृक्षवत् है जिसविपे अपर कछु नहीं निकसता, जैसे केलेके छीलेते अपर कछु नहीं निकसता, सो कौन वृक्ष है, अरु चौथा प्रश्न यह है कि, वह पुरुष कौन है, जो स्वप्नते स्वप्न बहुारे तिसविषे अपर स्वप्न देखता है, अरु एक रहता हैं, परिणामको नहीं प्राप्त होता, इन प्रश्नोंका उत्तर कहु, जो प्रश्नको उत्तर न दिया तौ तेरे ताई आहार करौंगा ॥ इति श्रीयोगवासिष्ठे निर्वाण- प्रकरणे वैतालप्रश्नोक्ति नम एकषष्टितमः सर्गः ॥ ६१ ॥ द्विषष्टितमः सर्गः ६२. राजवेतालसंवादे वेतालब्रह्मपप्राप्तिवर्णनम् ।। राजोवाच ॥ हे वैताल ! इन प्रश्नका उत्तर सुन, ब्रह्मांडरूपी एक मिर्च बीज है, अरु तिसविषे तीक्ष्णता आत्मा चेतन सत्पद है, अरु ऐसे मिर्च एक टाससाथ कई सहस्र लगे हुए हैं, अरु ऐसे टास एक वृक्षपाथ कई सहस्र लगे हुए हैं, अरु ऐसे वृक्ष एक वनविषे कई सहस्र हैं, अरु ऐसे कई सहस्र वन एक शिखरपर स्थित हैं, अरुऐसे कई सहस्र शिखर एक पर्वतपर स्थित हैं, अरुऐसे कई सहस्र पर्वत एक नगरविष हैं, अरु ऐसे कई सहस्र नगर एक द्वीपविषे हैं, अरु ऐसे सहस्र द्वीप एक भव पृथ्वीविषे हैं, अरुऐसे कई सहस्र पृथ्वी भव एक अंडविषे हैं, अरु ऐसे कई सहस्र अँड एक समुद्रविषे लहरी हैं, अरु ऐसे कई सहस्र समुद्र एक पुरुषके उदरविषे हैं अरु ऐसे कई पुरुष एक पुरुषके गलेविष माली परोई हुई हैं, ऐसे कई लाख कोटि सूर्यके अणु हैं, जिस सूर्यकार सर्व प्रकाशमान हैं, सो सूर्य आत्मा है, जिसविषे अनंत सृष्टि स्थित है ॥ वैताल ! जैसे यह सृष्टि भासती है, इदं कारकै तैसे सर्व सृष्टि जान जो यह सृष्टि सत्य है, तो सब सृष्टि सत् जान जो यह सृष्टि स्वप्न है, तो सर्व सृष्टि स्वम जान, अरु आत्मा ऐसा सूर्य हैं, जिसते इतर अपर अणु भी कछु नहीं, अरु सदा अपने आपविषे स्थित है, इसते अपर क्या पूछता है।