पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२२६

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चिन्तामणिवृत्तान्तवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. ( १३०७ ) है, अरु बडे भयानक वनविषे जावैगा, ऐसे कहकर मनविषे विचार किया कि, राजाको देखा चाहिये, तब योगविषे स्थित होकर आका- शको उडी, आकाशकीनाई देहको अंतर्धान कारकै जैसे योगेश्वरी भवानी पड़ती है, तैसे उडी, अरु आकाशविषे स्थित होकार देखा कि, राजा चला जाता है, तब राणीके मनविषे आया कि, इसका मार्ग रोक बहुरि एक क्षणमात्र स्थित होकार भविष्यको विचारने लगी कि, राजा अरु मेरा सयोग नीतिविषे कैसे रचा है, तब देखत भई कि, राजा अरु मेरा मिलाप होनेविषे बहुत काल शेष हैं, अरु अवश्य मिलाप होगा मुझे उसको उपदेशकारि जगावना है, परंतु केतेक काल उपरांत अभी इसके कषाय परिपक्व नहीं, ताते अब राजाका मार्ग नहीं रोकना, तब राणी बार अपने घर आई, अरु शय्यापर शयन किया, अरु बडी प्रसन्नताको प्राप्त भई; जब रात्रि व्यतीत भई, तब मंत्रीसे कहने लगी। कि, राजा एक तीर्थ पर्सणे गया है, दर्शन कारकै बढुवार आवैगा, ऐसे मंत्री अरु प्रजाको कहा, बहुरि मत्रीको आज्ञा करी कि, तुम अपने कार्यविषे वतौं तब मंत्री अपनी चेष्टाविषे वर्तने लगे, इसीप्रकार राणीने अष्ट वर्षपर्यंत राज्य किया, अरु प्रजाको सुख दिया, जैसे बागवान् कमलोंके क्यारीको सुखसे पालता है, तैसे राणीने प्रजाको सुख दिया, अरु वहां राजाको अष्ट वर्ष तप करते व्यतीत भये, अरु राजाके अंग दुर्बल हो गये अरु वहाँ राणीने राज्य किया, जैसे भंवरा अपर ठौर होवे, तैसे इनको और और ठरविषे व्यतीत भया, तब राणीने विचार किया कि,राजा अब मेरे वचनोंका अधिकारी भया है, अंतःकरण राजाका तप कारकै शुद्ध हुआ है, अब राजाको देखिये. तब राणी उडी आकाशको गई, अरु नंदनवन इंद्रका है सो देखा, वहां जो दिव्य पवन हैं, तिनका स्पर्श हुआ, तब राणीके चित्तविष आया कि मेरे ताईं भर्ता कब मिलेगा, बहुरि कहने लगी कि, बडा आश्चर्य है, मैं तौ सपदको प्राप्त भई थी, तो भी मेरा सन चलायमान भया है, ताते इतर जीवकी क्या कहनी है, तब वहाँते चली, आगे कमल- फूल देखे, देखिकारि कहने लगी कि, मेरे ताईं यह भर्ता कब मिलेगा,