पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/४९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

( १३८०) योगवासिष्ठ । भी नहीं होता, केवल शाँतरूप है, भ्रमकारकै जगत् भासता है, जैसे को बालक मनोराज्य कारकै आकाशवर्षे धुतलियां रचै सो आकाशविषे कछु बना नहीं परंतु उसके संकल्पविष है, तैसे यह विश्व मनरूपी बालकने रची है, तिसकी रची हुईविषे भी ज्ञानवान्को शून्यता भासती है । हे रामजी । संकल्पमात्रही सृष्टि क्यों हुई जब इसका संकल्प नष्ट होता है तब शतिपद शेष रहता है सो कैसा पद है, निरहंकार सत्तामात्र पद है, अरु असतकी नई स्थित है, बडार तिस चिन्मात्र अद्वैतविषे अहताकरिकै जगत् भासि आता है, जब अर्हता फुरती है, तब जगत् भासता है, अरु जब स्वरूपका साक्षात्कार होता है तब अहंतारूप भ्रम मिटि जाता है, जब अहंतारूप भ्रम मिटा, तब जगत्का भी अभाव होता है, अरु इच्छाका भी अभाव हो जाता है, ताते ज्ञानीको इच्छा वासना कोऊ नहीं रहती, जब प्रसन्नरूप अहंता नष्ट हुई, तब तिस पदको प्राप्त होता है, जिस पदविषे अणिमा आदिक सिद्धि भी सूखे तृणकी नई भासती हैं, ऐसा आनंदरूप है, जिसविषे ब्रह्मादिकका सुख भी तृणसमान भासता है । हे रामजी । जिसको ऐसा ब्रह्मानंद प्राप्त हुआ है, तिपको बहार इच्छा किसीकी नहीं रहती, अरु तिसको मारनेहारे विषयादिक पदार्थ मृतक नहीं करते, अरु जिवावने हारे पदार्थ अमृत आदिक जीवते नहीं, केवल निर्वाणपविषे तिसकी स्थिति है । हे रामजी । जिस पुरुघको संपूर्ण संसारते वैराग्य हुआ है, तिसको संसारके पदार्थ सुखदायक नहीं भासते, मिथ्या भासते हैं, सो संसारसमुद्रके पारको प्राप्त भया है, जिसकी संसारकी वासना अरु अहंता नष्ट भई है, तिसकी मूर्ति देखने मात्र भासती है, सो निर्वासी ज्ञानवान् शतरूप है । हेरामजी 1 इच्छाही बंधन है, जब इच्छाका अभाव हुआ, तब आनंद हुआ, अरु इच्छा भी तब फुरती है, जब संसारको सत्यजानताहै, अरु संसारकी सत्यता अहंताकार भासती है, जब अहंतारूपी बीज नष्ट हो जावै तब निर्वाणपदकी प्राप्ति होवे ॥ हे रामजी । संसार कछु बना नहीं भ्रमकरि सिद्ध हुआ है, सर्वही ब्रह्म है, तिस मरमात्माविपे जो परिच्छिन्न अहंता फुरी, सोई उपाधि है॥ हे रामजी ! बुद्धिते आदि लेकर जेती यह दृश्य है, जिसको अपनेविषे