पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/५१६

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हरिणोपाख्यानेवृत्तान्तयोगोपदेशवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (१३९७) समाधानरूप वृक्ष उत्पन्न होता है, सो श्रवण कर, क्रमकरिके इसके । पत्र पुष्प लताते आदि सब समाधानरूप इस वृक्षका है ॥ हे रामजी ! यह वृक्ष सब जीवको कल्याणके निमित्त साधने योग्य है, सो अब तू इसका क्रम सुन, बलकरिकै उत्पन्न होता है, अरु संत जनके वनविषे. यह ध्यानरूपी वृक्ष उपजता है, अरु चित्तरूपी पृथ्वीविषे लगता है,अरु वैराग्यरूपी इसका बीज है, सो वैराग्य दो प्रकारका होता है, जो कोऊ दुःख कष्ट प्राप्त होवै तिसकर भी वैराग्य उपजि आता है, अथवा शुद्ध हृदय निष्काम होता हैं, तो भी वैराग्य उपजता हैं, तिस वैराग्यरूपी बीजको चित्तरूपी भूमिकाविषे पाता है, अरु जब वासनारूपी हल फेरता है, संतकी संगति अरु सच्छास्त्ररूपी जलकार सिंचता है, मनरूपी क्यारीविषे सो जल निर्मल हैं; शीतल है, अरु हृदयगम्य है, तिस कोमलता अरु दयारूपी जलकर बीजको सिंचता है, तब बढनेकी आशा होती है, अरु सब क्रियारूपी जाड करिके अशुभरूपी कुडेको दूर करता है,अरु बहुत जलते भी रक्षा करता है, सो आत्मविचाररूपी सूर्य की किरणोंकार सूखता है, अरु तिसके चौफेर धैर्यरूपी वाणी करिये, अरु तप दान तीर्थ स्रानरूपी थडे ऊपर रख बैठना, जो बीज जलि न जावे, अरु आशारूपी पक्षीते रक्षा करनी, जो वैराग्यरूपी बीजको काढि न ले जावे, अरु अभिलाषारूपी बूढे बैलते रक्षा करणी कि क्षेत्रविधे प्रवेशकारकै इसको मर्दन न कुरै, तिसके निमित्त संतोष अरु संतोषकी स्त्री मुदिता दोनों बैठाय रखने, अरु इस बीजका नाश करता जो मेचते उपजता है,गडा, तिसते भी रक्षा करनी,सो गडाक्या हैं, संपदा धनकी प्राप्ति होनी, अरु सुंदर स्त्रियोंकी प्राप्तिहोनी,सोवैराग्यरूपी बीजका नाशक गडा, एक इसकी रक्षाका सामान्य उपाय है। अरु एक विशेष उपाय है, जो तप करना अरु इंद्रियोंको सकुचावना, अरु दुःखीपर दया करनी, अरु संतोषमात्र पाठ जाप करना इत्यादिक शुभ क्रिया करनी, यह शुभ क्रियारूपी पुतली येत्री इसके विद्यमान राखिये तो दूर हो जाता है, अरु दूसरा परम उपाय यह है कि संतकी संगति करनी, अरु सच्छास्त्रका श्रवण करना, अरु प्रणव जो कार