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योगवासिष्ठ।

भये हैं, क्रम करिकै हम बडे उडनेयोग्य हुए, तब माता हमको ब्रह्माणीकेपास ले गई, तिसके आगे हम मस्तक टेका तब ब्रह्माणी समाधिते उतरी थी, तब उसने देखिकरि हमको कृपाकी वृत्ति धारी हमारे शीशपर हाथ रक्खा उसके हाथ रखनेसाथ हमारी अविद्या नष्ट हो गई, अरु हमारा मन तृप्त शांतरूप होगया, जीवन्मुक्तपदविषे हम स्थित भये, तब हमको यह वृत्ति फुरि आई कि किसीप्रकार एकांत ध्यानविषे स्थित होवैं, देवीने आज्ञा करी अब तुम जावहु, तब देवीजीकी आज्ञा करि हम पिताके पास आये, पिताने हमको कंठ लगाया, अरु मस्तक चूंबा, तब हम अलंबुसा देवीकी पूजा करत भये, तब पिताने हमसे कहा॥ हे पुत्रो! तुम संसाररूपी जालविषे तो नहीं फँसे, अरु जो तुम निकसे नहीं फंसे हो, तब मैं भगवती देवीजीकी प्रार्थना करता हौं, वह भृत्यपर दयालु है, जैसे तुम प्राप्त होहुगे, तैसे तुमको प्राप्त करैगी॥ हे मुनीश्वर! तब हमने कहा॥ हे पिता! हम तौ ज्ञातज्ञेय हुए हैं, जो कछु जानने योग्य है सो जाना है अरु जो पाने योग्य है सो हम पाया है। ब्रह्माणी देवीजीके प्रसाद करिके अब हमको एकांतस्थानकी इच्छा है, जहां एकांत होवै तहां जाय स्थित होवें, तब चंद्रपिताने कहा॥ हे पुत्रो! एकांत स्थान सुन, निर्दोष महापावन सुंदर आलय बना हुआ है, निर्भय निर्मोह सर्व क्षोभते रहित जहां कोऊ दुःख नहीं, ऐसा एकांतस्थान है, अरु सर्व रत्नकी खानहै, अरु सर्व देवताओंका आश्रयरूपहै, सुमेरु जो पर्वत है, सूर्य चंद्रमा उसके दीपक हैं, चहूँफेर फिरते हैं, ब्रह्मांडरूपी मंडपका वह स्तंभ है, अरु स्वर्णका है, चंद्र सूर्य तिसके नेत्र हैं, अरु ताराकी कंठविषे मालाहै, दशोंदिशा तिसके वस्त्र, रत्नमणिका भूषण हैं, वृक्षवल्ली तिसके रोमावली हैं, त्रिलोकीविषे तिसकी पूजा है, षोडश सहस्त्र योजन पातालविषेहैं, तहां नाग दैत्य इसकी पूजा करतेहैं, अरु चौरासीसहस्र योजन ऊर्ध्वकोहै, तहां गंधर्व देवता किन्नर राक्षस मनुष्य इसकी पूजा करते हैं, ऐसा पर्वत जंबूद्वीपके एक स्थानविषे स्थितहै, चतुर्दशप्रकारके भूतजात उसके आश्रय रहते हैं, बड़ा ऊंचा पर्वत है, तिसका पद्मराग नाम एक शिखर है, मानो सूर्य आय उदय हुआ है, ऐसा प्रकाशरूप है,