पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६७१

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(१५५२) यौगवासिष्ठ । केतक कालपीछे चेतन होकर बहुरि उनहीं -कर्मको भोगते हैं, जैसे सूर्य के आगे बादल आवै, बहुर निवृत्त होवै, तैसे जगत होता है, अरु ऊरणारूप जो जीव हैं, जैसा तिसविषे निश्चय होता है, तैसाही भासता हैं, जिसको एक आत्माविषे निश्चय होता है, सो जन्म मृत्यु आदिक विकारते रहित होता है, अरु जिसको नानास्वरूप जगतविषे निश्चय होता है, सो जन्ममरणते नहीं छूटता ॥ हे रामजी। जिसबुद्धिविषे पदार्थका रंग चढता है, सो रागद्वेषरूप नरकते मुक्त नहीं होता, अरु जिसको एक आत्माका अभ्यास होता है, तिसके अभ्यासके बलते सब जगत् आत्मत्वकार भासता हैं, अरु राग द्वेषते मुक्त होता हैं, जैसे स्वप्नविषे किसीको अपना जाग्रत् स्वरूप स्मरण आता है, तब सर्व स्वप्नका जगत् तिसको अपना आप भासता है, तैसें जिसको आत्मज्ञान होता है, तिसको सर्व जगत् अपना आप भासता है, सर्वदा काल आत्मसत्ता अनुभवरूप जाग्रत् ज्योति है, जिसको ऐसे आत्मसत्ताविषे नास्तिभावना होती है, सो ऐसी अवस्थाको प्राप्त होता है, गत्तविषे कीट होता है, पाषाण वृक्ष पर्वत आदिक स्थावर योनिको प्राप्त होता है, चिरकालपर्यंत तिनविषे रहता है, जबलग उसकी बुद्धिको द्वैतका संयोग होता है, तबलग जगत् भ्रमको देखता है, अरु भ्रम नहीं मिटता, जब उसकी संवितको द्वैतका संयोग मिटि जावै, तब जगत्भ्रम निवृत्त हो जाता है । हे रामजी ! सम्यक्रज्ञानकारि जगभ्रमका अभाव हो जावैगा, अभावका निश्चय कुरै, तब बार जगत् नहीं भासता, अरु जब संसारके पदार्थकारे संवित् वेधी हुई है, तब जैसा निश्चय होवैगा तैसाही प्राप्त होता है, तिस निश्चयके अनुसार गतिको पावैगा ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! नास्तिकवादीका वृत्तांत तुमने कहा सो मैं जाना, अरु जिस पुरुषके हृदयविषे जगत्की सत्यता स्थित है, अरु आत्मबोधके मार्गते शून्य है, शुद्धस्वरूपको नहीं जानता, तिसको अज्ञान है, तिसके मोक्षकी युक्ति अरु तिसकी अवस्था क्या होती है, सो मेरे दृढबोधनिमित्त कहौ ॥ वसिष्ठ उवाच॥ हे रामजी। इसका उत्तर तो मैं प्रथमही तुझको कहा है, अब फेरि