पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/७०६

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विपश्चितसमुद्रप्राप्तिवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तराई ६. (१५८७) तिसकरि जो तेज उनकी सेनाको जलाता था सो शीतल हो गया, तिसके अनंतर शिव अस्र चलाया, सो कैसा चलाया, प्रथम शस्त्रकी नदी चली, बडार त्रिशूली नदी चली, बहुरि चक्रकी नदी चली, बहुरि वज्रकी नदी चली, बरछीकी नदी चली, बिजलीकी नदी चली, अग्निकी नदी चली इत्यादिक जो शस्त्र अरु अस्त्र हैं तिनकी वर्षा हुई, जब इसप्रकार नदियों चलीं तब जो कछु सेना सन्मुख आती थी सो मृतक हो गई, जैसे कमलिनी काटी जाती है, तैसे शुरवीर काटे जावें, पहाडकी कंदरा गिरि बहुत उडते जावें, समुद्रविषे जाय पड़ें, सुमेरु कंदराविषे जाय छुपै, समुद्रविषे जयकारे सेना डूबै, जैसे अज्ञानी विषयमें डूबते हैं, इसप्रकार दोनों औरते सेना शुन्य भई, चारों दिशाकी सेना नाशको प्राप्त भई, चीन महाचीन देशके अरु पहाड़ कंदाके रहनेवाले सब बहते जावें ॥ हे रामजी कई शस्त्रकार अरु आँधीकार उड़े सो सब क्षेत्रविषे जाय पडे, कई वनविषे, कई नीचे देशविषे, जो पुण्यवान् थे, सो उत्तम क्षेत्रविषे जाय पडे, मृतक हुए वह स्वर्गको गये अरु पापी नीच देशविघे जाय पडे तिसकार दुर्गतिको प्राप्त हुए. कई पिशाच हुए, कितनेको विद्याधारी ले गई, कई ऋषीश्वरके स्थानोंविषे जीते जाय पड़े तिनकी उनने रक्षा करी इसी प्रकार बाणकार छेदे हुए नाशको प्राप्त भए, रुधिरकी नदियोंविषे बहते समुद्रकी ओर चले जावें॥ हे रामजी । जब सब सेना शुन्य हो गई, तब आकाश शुद्ध हुआ जैसे ज्ञानीका मन निर्मल होता है, तैसे आकाश अधिक क्षोभते रहित भया, जब सब सेना शून्य भई, तब चारों राजा आगेको चले जावें । हे रामजी ! चारों विपश्चित चारों दिशाके समुद्रके ऊपर जाय प्राप्त • ये, तब क्या देखे कि बड़े गंभीर समुद्र हैं, रत्न चमकते हैं, कहूं हीरा मोती चमकते हैं, इत्यादिक रत्नमणिकी जात सब देखत भये, अरु बड़े गंभीर समुद्रविषे बड़े मच्छ देखते भये, अरु तरंग उछलते हैं, अरु रेतीविषे नानाप्रकारके वृक्ष लगे हुए हैं, लौंग एलाचीके वृक्ष चंदनके वृक्ष हैं, इत्यादिक वृक्ष समुद्र ऊपर जायकर देखते भये ॥ इति श्रीयोगवासिष्ठे निर्वाणप्रक• विपश्चितसमुद्रप्राप्तिनाम द्विशताधिकाष्टादशः सर्गः ॥२१८॥