पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/९३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

निर्वाणवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तरार्द्ध ६. (१८१९) घुजीने कहा ॥ हे रामजी ! अव इम गमन करते हैं, मध्याह्नकी उपासनाका समय हैं, जो कछु पूछना होवे सो वहुरि काल पूछना, तव राजा दशरथ उठ खड़ा हुआ; पुत्रसहित वसिष्ठजीका वहुत पूजन किया, अपर जो ऋषीश्वर मुनीश्वर ब्राह्मण थे, तिनका यथायोग्य पूजन किया, मोती हीराको माला अरु मुहर रुपये घोडे गौ वस्त्र भूषण इनते आदिलेकर जो ऐश्वर्यकी सामग्री है, तिसकरि यथायोग्य पूजन किया, जो विरह संन्यासी थे, तिनको प्रणाम काप्रसन्न किये अपर जो राजर्षि थे, तिनका भी पूजन किया, तव वसिष्ठजी उठ खडे हुये, परस्पर नसस्कार किया, मध्याह्नके नौबत नगारे वाजने लगे, सव श्रोता उठिकर अपने आपसाथ विचारने लगे, चले जावें, अरु शीश हिलावै, हाथकी अंगुली हिलावै, नेत्रकी भावा हिलावै, परस्पर चर्चा करते जावें, सब अपने स्थानोंको गये, वसिष्ठजी संध्या उपासना करने लगे, अरु जेते श्रोता थे, सो विचारपूर्वक रात्रिको व्यतीत करत भये,सूर्यकी किरणों साथ बहुरि आये गगनचारी सप्त लोकके रहनेवाले ऋषि देवता आये, सर्व श्रोता भुमिवासी राजर्षि ब्रह्मा, अपर जो श्रोता थे, सो सव आयकर अपने स्थानपर वैठि गये, परस्पर नमस्कार किया, तव रामजी हाथ जोडिकरि उठि खड़ा हुआ, अरु कहा । हे भगवन् ! अव जो कछु सुझको श्रवण करना, अरु जानना रहता है सो तुमही कृपा कारकै कहौ । वसिष्ठ उवाच ।। हे रामजी ! जो कछु सुनने योग्य था, सो तुझने सुना है। अब तू कृतकृत्य भया है, जो कछु रघुवंशीका कुल है, सो सवही तुझने तारा है, अरु जो आगे हुये हैं, अरु जो अव हैं, अरु जो आगे होवेंगे, सो सव तुझने कृतकृत्य किये हैं। अव तू परमपदको प्राप्त भया है, अपर जो कछु तुझको पूछनेकी इच्छा है। सो पूछ ले, अरु हे रामजी । जो सत्तासमानाविषे स्थित भया है तौ विश्वामित्रकेसाथ जायकार इसका कार्य करु, अरु कछु पूछनेकी इच्छा है सो पूछि ले ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! आगे जो मैं आपको देखता था, सो इस देहसंयुक्त परिच्छिन्नरूप देखता था अरु अव आपको देखता हौं, जो आपते इतर मुझको कछु नहीं भासता, सब अपना आपही भासतो है। हे मुनीश्वर ! अव इस शरीरसाथ भी मुझको प्रयोजन कछु नहीं रहा,