पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/१०४

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बाईसवाँ अध्याय
कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म

जब संजय विदा होकर चला गया तो महाराज कृष्ण ने धृतराष्ट्र के पास जाने का विचार प्रकट किया। श्रीकृष्ण जब चलने के लिए तैयार हुए तो युधिष्ठिर को बड़ी चिन्ता हुई। उसे यह विचार हुआ कि दुष्ट दुर्योधन कहीं कृष्ण को हानि न पहुँचाये। इसलिए उसने कृष्ण को बहुत समझाया कि वे वहाँ न जायें। यहाँ तक कहा कि आपके बिना मुझे चक्रवर्ती राज्य और स्वर्ग भी स्वीकार नहीं। परन्तु कृष्ण ने उनकी एक न मानी और युधिष्ठिर को कहा कि मेरा हस्तिनापुर जाना आवश्यक है, इसलिए कि यदि मुझे इस काम में सफलता नहीं मिली और दुर्योधन ने सन्धि के प्रस्ताव को न माना तो पीछे से कोई हमे दोष नहीं दे सकेगा कि हमने सन्धि नहीं की। जब युधिष्ठिर ने देखा कि कृष्ण अपने संकल्प में दृढ़ है, तो उसने उनको जाने की आज्ञा दी तथा अपनी ओर से पूरा अधिकार भी दिया कि जो शर्त आप स्वीकार कर आयेंगे वह मुझे सर्वथा स्वीकार होगी। कृष्ण ने प्रस्थान करने के पहले फिर युधिष्ठिर को राजधर्म का उपदेश दिया ताकि युधिष्ठिर सन्धि की आशा में अपनी तैयारियो से असावधान न हो जाये और दुर्योधन को सहज ही में लड़ाई जीतने का अवसर मिले। उस उपदेश में कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि आजीवन ब्रह्मचारी रहना क्षत्रिय का धर्म नहीं। क्षत्रिय के लिए भिक्षा माँगना भी महापाप है! युद्ध में प्राण देने से क्षत्रिय सीधा स्वर्ग जाता है। क्षत्रिय के लिए कायर होना पाप है! मुझे विश्वास है कि दुर्योधन कभी सन्धि के लिए राजी नही होगा। मैं दुर्योधन को अच्छी तरह जानता हूँ। देखो! उसने आप और आपके भाइयों के साथ कैसा बर्ताव किया है। मैं प्रत्येक प्रकार से दुर्योधन और उसके सहायकों को समझाने का यत्न करूँगा, परन्तु मेरी आत्मा कहती है कि वह एक भी बात नहीं मानेगा। लड़ाई अवश्य करनी ही पड़ेगी। इसलिए हे राजन् तुझे चाहिए कि अच्छी तरह से लड़ाई की तैयारियाँ करता रह और अपने धर्म से विमुख न हो।

कृष्ण के इस कथन को सुनकर भीम और अर्जुन के चित्त मे यह भय उत्पन्न हुआ कि कहीं कृष्ण अपने कठोर वचन से काम न बिगाड़ दें। तब तो सन्धि असंभव हो जायगी। इसलिए दोनों ने बड़ी नप्रता से हाथ जोड़कर कृष्ण से विनयपूर्वक कहा कि जहाँ तक संभव हो, आप दुर्योधन के साथ नम्रता का बर्ताव करें, क्योंकि हम कदापि लड़ाई करना नहीं चाहते। यदि दुर्योधन कुछ थोड़े ग्राम भी हमको दे दे तो हम उसी पर संतोष करके दिन काट लेगे। इस पर कृष्ण ने उत्तर दिया, “ऐसा जान पड़ता है कि तुम उससे डर गये हो। तुम्हारी इस कायरता पर मुझे बड़ा दुख होता है भीम को कृष्ण का यह कटाक्ष तीर के समान चुभा