पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/११९

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अट्ठाईसवाँ अध्याय
भीष्म की पराजय

जिस दिन प्रात:काल युद्ध आरम्भ हुआ उसके पहले दिन सायंकाल युधिष्ठिर ने कवच और शस्त्रादि उतार कुरुसेना की ओर प्रस्थान किया। उसके भाई तथा उसकी सेना आश्चर्य मे थी कि महाराज यह क्या कर रहे हैं, शस्त्र-रहित होकर शत्रु की ओर क्यों जा रहे है? शत्र-दल भी चकित था कि युधिष्ठिर यह क्या कर रहे है। उनके भाई उनके पीछे दौड़े और उनसे उनके इस विचित्र कार्य का कारण पूछने लगे। उनके साथ कृष्ण भी थे। जब युधिष्ठिर ने अर्जुन की बातो का कुछ उत्तर न दिया तो कृष्ण ने अर्जुन आदि भाइयों को समझाया कि युद्ध से पहले युधिष्ठिर अपने कुल के ज्येष्ठ भीष्म और आचार्य से लड़ाई करने की आज्ञा लेने चले हैं, क्योंकि शास्त्र ऐसा आदेश देते हैं। युधिष्ठिर अपने भाइयों को साथ लिए भीष्म के डेरे में पहुँचे और उनके चरणों पर सिर धर दिया और लड़ाई की आज्ञा माँगी। भीष्म युधिष्ठिर की इस नीति पर बड़े प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिया, “पुत्र! मैं प्रसन्न चित्त से तुम्हें लड़ाई करने की आज्ञा देता हूँ। मेरी समझ में तू सत्य मार्ग पर है। परमात्मा तेरी वृद्धि करे।" भीष्म की आशीष लेकर युधिष्ठिर अपने आचार्य द्रोण के पास गये, और इसी तरह उनसे आज्ञा प्राप्त की। फिर कृपाचार्य इत्यादि के पास से होते हुए अपने डेरे पर लौटे।

इसके पश्चात् लड़ाई छिड़ गई। दस दिन तक कुरुसेना लड़ती रही। कुरुसेना का सेनापति भीष्म अपने काल का विख्यात योद्धा था। पाण्डवों की सेना में यदि कोई उसकी बराबरी का था तो वह केवल अर्जुन था। दूसरे में ऐसी शक्ति नहीं थी कि भीष्म के बाणों के आगे ठहरता। पाण्डव अच्छी तरह से जानते थे कि जब तक भीष्म जीवित रहेंगे तब तक जय पाना असभव है, इसलिए वे अनेक प्रकार से भीष्म पर आक्रमण करते थे, पर हर बार भाग खड़े होते थे। तीन दिन की लड़ाई में भीष्म ने अनगिनत प्राणों को नष्ट किया। रक्त की धारा बह चली। जिधर वह जा पड़ता था उधर ही बात की बात में सैकड़ों और हजारों खेत रहते थे। कृष्ण को इन तीन दिनो की लड़ाई में आभास हो गया कि अर्जुन जी से नहीं लड़ता और भीष्म पर मार करने से झिझकता है।

उन्हें विश्वास था कि अर्जुन के अतिरिक्त और किसी में यह पुरुषार्थ नहीं जो भीष्म को नीचा दिखावे और जब तक भीष्म जीवित है तब तक पाण्डवों का मनोरथ सफल होना कठिन है। इसलिए तीसरे दिन की लड़ाई में जब उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि अर्जुन जी तोडकर नहीं लड़ता और भीष्म पर धावा करते समय मुँह मोड़ता है तो वे मारे क्रोध के रथ से उतर पड़े और शस्त्र हाथ में लेकर यह कहते हुए भीष्म की ओर चले कि जिसको जाना हो वह चला