जाय, जो मरने से डरता है वह पीछे रहे। यदि कोई भीष्म पर वार नही करता तो मै खुद भीष्म को मार गिराऊँगा। कृष्ण की यह दशा देखकर अर्जुन कुछ लज्जित हुआ और मन में सोचने लगा कि कृष्ण ने तो लड़ाई में सस्त्र न चलाने का प्रण किया था। यदि क्रोधवश ये अपना प्रण भंग कर बैठे तो इसका पाप मेरे सिर होगा। यह सोचकर वह भी कृष्ण के पीछे हो गया। कुछ दूर जाने पर उनको पकड़ लिया और सशपथ कहने लगा, "आप चिन्ता न करें, मैं भीष्म को मारूँगा।" इस सारी योजना से कृष्ण का जो अभिप्राय था वह सिद्ध हुआ। अर्जुन से यह बात सुनके कृष्ण ठंडे हो गये और फिर रथ पर आ बैठे। अब अर्जुन ने बड़े उत्साह से युद्ध आरम्भ किया। यहाँ तक कि लड़ाई का समा बदल दिया और हजारों आदमियों को मिट्टी में मिला दिया। पर फिर भी जब तक भीष्म जीवित थे तब तक लड़ाई का बंद होना असंभव था, इसलिए पाण्डवों ने पूरा बल उनको पराजित करने को ओर लगाया।
उधर दुर्योधन और उसके भाइयों ने पूर्ण रीति से भीष्म की रक्षा की और उनकी सहायता का प्रबंध किया। यहाँ तक कि सात दिन इसी दाँवपेच में समाप्त हो गये। नित्यप्रति हजारों सैनिको का वारा-न्यारा होता था परन्तु सात दिन तक न भीष्म रणक्षेत्र से हटे न अर्जुन को किसी प्रकार का कष्ट पहुँचा। सातवें दिन अर्जुन और शिखण्डी ने मिलकर भीष्म को अपने बाणों से पिरो दिया। यहाँ तक कि वृद्ध, बाल जितेन्द्रिय, बाल ब्रह्मचारी योद्धाओं के योद्धा युद्ध के योग्य न रहा और गिर गया। जब भीष्म के गिरने का समाचार सैन्य दब में फैल गया तो द्रोण की आज्ञा से लड़ाई बन्द हो गई और दोनों ओर के योद्धा मान-मर्यादा के विचार से उनके सिरहाने एकत्रित हुए। भीष्म ने तकिये की इच्छा प्रकट की जिस पर दुर्योधन आदि कौरवो ने भाँतिभाँति के बहुमूल्य और नरम तकिये मँगाये, जिनको भीष्म ने स्वीकार नहीं किया और अर्जुन की ओर ध्यान देकर कहा कि मेरी समयानकल अवस्था के अनुसार मेरे लिए तकिये बना दे। अर्जन ने ऐसी योग्यता से तीन बाण भूमि पर चलाये जिससे इन तीन बाणों से भीष्म के सिर के लिए तकिया बन गया। बाण-शय्या के लिए बाणों का ही तकिया उपयुक्त था। भीम बहुत प्रसन्न हुए और अर्जुन को आशीर्वाद दिया।
भीष्म की मृत्यु के संबंध में यह कहावत प्रचलित है कि जिस समय वह धरती पर गिरे वहाँ अनगिनत बाण थे और वह इसी तरह बाणों पर पड़े हुए कई दिनों तक जीवित रहे, मानो उनकी शय्या बाणों की बनी हुई थी। इसीलिए अर्जुन ने बाणो का सिरहाना उनके लिए बनाया जिससे वे अत्यन्त प्रसन्न हुए।
नोट-भीष्म और अर्जुन के युद्ध के संबंध में एक और किवदन्ती है जो साधारण दृष्टि से पीछे की मिलावट प्रतीत होती है। कथा इस प्रकार है कि जब 9 दिन तक लड़ाई होती रही और भीष्म को कुछ हानि नहीं पहुँची तो पाण्डव अधिक चिंतित हुए। तब कृष्ण ने युधिष्ठिर को यह सलाह दी कि भीष्म के पास चलो और उसी से पूछो कि तुमको किस तरह से मारा जाय। जब युधिष्ठिर ने भीष्म के समीप जाकर यह प्रश्न किया तो भीष्म ने उत्तर दिया कि तुम्हारी सेना मे जो युवराज शिखंडी (राजा पांचाल का पुत्र) है उसका स्वरूप स्त्रियों के सदृश