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28 योगिराज श्रीकृष्ण
 

6. मानसिक भावों में परिवर्तन


इस संकीर्णता से निकलकर बाहर मैदान में आते ही मानसिक शक्तियाँ कुछ ऐसी विस्तृत हुईं कि वे गूढ़ और तात्त्विक विषयों के मनन की ओर झुकने लगी और झट मेरे कान मे भनक पडी-अरे, एक ओर तो श्रीकृष्णचंद्र के नाम के साथ ऐसी अश्लील बाते जोड़ी जाती हैं, उधर उन्ही को उस जगत्प्रसिद्ध ग्रंथ 'गीता' का रचयिता कहा जाता है। यह पुस्तक अपने विषय की गूढ़ता, सच्चे उपदेश, भाषा की सरलता, भक्ति और प्रेम की दृष्टि से संसार के मनुष्यकृत ग्रथो में अद्वितीय है, जिसकी अलौकिक लेखप्रणाली अपना आदर्श आप ही कही जा सकती है। कानों में यह भनक पड़नी थी कि साथ ही किसी ने उत्तर दिया-जो नीति और आध्यात्मिक विद्या का ऐसा उपदेशक हो वह ऐसा तमाशबीन, विषयी और धूर्त नहीं हो सकता जैसा लोग कृष्णलीला में दर्शाते है। हमारे हृदय में अभी इस भाव का अंकुर मात्र ही था और अभी भली भाँति जड़ नहीं पकड़ सका था कि एक दूसरी भनक सुनाई दी और वह यह थी कि श्रीकृष्णचन्द्र पर विषयी होने का जो कलंक लगाते हैं वह केवल कवियों का हस्तक्षेप है। इनको किसी प्रकार वास्तविक घटना नहीं कह सकते। फिर ऐसे प्रमाण पाये जाते है जिससे सिद्ध होता है कि इन लोगों (कवियों) ने अपनी इच्छानुकूल उन्हे अपना लक्ष्य बना लिया है। निदान यह भाव ऐसे परिपक्व होते गये कि कुछ कालोपरान्त उनके हृदय पर श्रीकृष्ण की बुद्धिमत्ता और नीति ने अपना पूर्ण अधिकार जमा लिया।

अब वह समय आ पहुँचा है जब कोई शिक्षित मनुष्य इस बात पर विश्वास नहीं करता कि श्रीकृष्ण के आचरण वास्तव में वैसे ही थे, जैसा कृष्णलीला में दिखलाते हैं। धर्म-विषयक चाहे परस्पर कितना ही विरोध हो, पर शिक्षित मण्डली में अब एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं रहा जो उनके नाम के साथ उन निर्लज्ज बातो को मिश्रित समझता हो, जो अशिक्षित मण्डली अब तक उनके माथे मँढ़ती है। पुरानी फैशन के पौराणिक धर्मनिष्ठा वाले भी इस यत्न में है कि श्रीमद्भागवत में से प्रेम और भक्ति का निचोड़ निकाले और उससे यह सिद्ध करें कि उनकी मोटी बातों की तह मे पवित्र प्रेम और अमृत रूपी भक्ति के अमूल्य रत्न दबे पड़े हैं।

इस प्रकार हरएक पुरुष इस अनुसन्धान में लगा है कि उसकी तह से दुर्लभ और अमूल्य रत्न खोज निकालें और उस महात्मा के जीवन की घटनाओ को इधर-उधर से एकत्र करके जीवनचरित के रूप में प्रकाशित करे। यह बात प्रमाणित है कि पूर्व काल में जीवनचरित लिखने की परिपाटी न थी इसी से श्रीकृष्ण का कोई जीवनवृत्तान्त हमारे साहित्य में मौजूद नहीं है। इसलिए उनके जीवन की कहानी क्रमानुसार लिखना मानो उन कवियों के हस्तक्षेपों और विश्वासो के संग्रह से उन वास्तविक घटनाओं का सार निकालकर अलग करना है, जिनको हम युक्तिसंगत कह सकें और जिनके क्रमानुसार संग्रह को हम जीवनचरित की पदवी दे सके।

7. पुराणों की प्राचीनता


श्रीकृष्ण के नाम से जितनी घटनाएँ जनसाधारण में प्रचलित है उन सबके कारण पुराण हैं और हिन्दू धर्म ने इन्हेें उनके ही प्रमाण के अनुसार सच्चा मान लिया है इसलिए सबसे पहले यह