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पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/४७

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46/ योगिराज श्रीकृष्ण
 


की जो पंक्तियाँ थीं उनका आज कही चिह्न भी नहीं बाकी रहा। जो किसी समय धन-सम्पन्न तथा ऊँचे-ऊँचे राजप्रासादों से सुशोभित होने के कारण इन्द्रपुरी कहलाती थी, उसकी आज जर्जर अवस्था देखकर आठ-आठ आँसू रोना पड़ता है। केवल यही नहीं, वरन् दूर-दूर से यात्रीगण तेरी पुरानी संपत्ति को याद कर-करके रोने के लिए अब भी उमड़े चले आते हैं। तेरे तट पर अब भी एक शहर बसा हुआ है जो हमको तेरी सारी पुरानी बड़ाई का स्मरण दिलाता है और जिसके पुराने खंडहर उसके नवीन मन्दिरों के साथ मिलकर काल की कुटिल गति का संदेह प्रमाण दिखा रहे हैं।

सहृदय पाठक ! आप समझ ही गए होंगे कि हमारा तात्पर्य मथुरा की नगरी से है, जो श्रीकृष्ण की जन्मभूमि होने के कारण हिन्दुओ का एक महान् तीर्थ-स्थान गिना जाता है, जिसकी स्तुति में हिन्दू कवियों ने अनेक कविताएँ रच डाली हैं।

ऐसा कहते हैं कि महाराज रामचन्द्र के समय में उस स्थान पर एक घना वन था जो एक जंगली राजा मधु के सत्व में था और जिसके नाम पर इस प्रान्त को मधुबन कहते थे। राजा मधु के मरने के उपरान्त उसका पुत्र लवण महाराजा रामचन्द्र से लड़ने के लिए तत्पर हुआ जिस पर शत्रुघ्न को उससे लड़ने को भेजा गया। लड़ाई में लवण मारा गया और महाराज शत्रुध्न की जय हुई जिसके स्मारक रूप में उन्होंने इस स्थान पर मथुरा नगरी बसाई। इसका मथुरा नाम क्यों पड़ा, यह प्रश्न ऐसा है जिसका उत्तर देना कठिन है। संभव है कि मधुपुरी से बिगड़कर मथुरा बन गया हो अथवा संस्कृत शब्द ‘मथ' से यह कुछ संबंध रखता हो। 'मथ' शब्द के अर्थ मथने अर्थात् मक्खन निकालने के हैं। संभव है कि दूध, दही और मक्खन को बहुतायत से इसका नाम मथुरा पड़ गया हो। जिन्दावस्था[] में मथुरा शब्द गोचर के लिए प्रयोग हुआ है फिर गोकुल[], ब्रज, और वृन्दावन ये सब नाम भी यही प्रकट करते हैं कि प्राचीन समय में इस प्रान्त में बड़े-बड़े वन थे जो अपने गोचरों तथा पशुओं के लिए प्रसिद्ध थे और जहाँ दूध, दही तथा मक्खनादि बहुतायत से मिलता था।

ऐतिहासिक समय में सर्वप्रथम मथुरा का वर्णन महात्मा बुद्ध के जीवनचरित में आया है जिससे प्रकट होता है कि उस समय भी यह शहर भारतवर्ष के दक्षिण प्रांत के प्रसिद्ध शहरो में था। यह नहीं कहा जा सकता कि उस समय भी इसे कोई धार्मिक श्रेष्ठता प्राप्त थी या नहीं, पर प्राय: बुद्धदेव के वहाँ व्याख्यान देने से विदित होता है कि यह शहर उस समय भी एक बड़ा केन्द्र होगा, क्योकि महात्मा बुद्ध विशेषतः ऐसे ही बडे-बड़े स्थानो में व्याख्यान दिया करते थे जहाँ लोगों की अधिक भीड़-भाड़ होती थी। मथुरा कई शताब्दियों तक बौद्ध-शिक्षा का केन्द्र स्थल बना रहा।

इसके उपरांत मथुरा का वर्णन यूनानियों के संदर्भ में हुआ है और इसमें कुछ संदेह नहीं कि यूनानियों ने इस पर विजय प्राप्त की और कुछ काल तक मथुरा बैक्ट्रिया वंश के अधीन रही।

  1. परसी वर्धान्ध वेन्दावस्ता
  2. श्रीमद्भागवत में गोकुल व माव का निवास के शब्द अर्थात् मव से बद्रब्द है मा० स० 10 श्लोक 25