पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
पाँचवाँ अध्याय
गोकुल से वृन्दावन गमन

इसी प्रकार गोकुल में रहते जब काल बीत चुका तो गोपों ने जातीय स्वभाव अथवा आवश्यकतावश अपना निवास स्थान बदलना चाहा और गोकुल से कुछ दूरी पर एक बन पसन्द किया, जिसका नाम वृन्दावन रखा गया । गोपों ने गोकुल में मिट्टी और ईट के घरद्वार तो बनाए नही थे जो उन्हें उनके छोड़ने में कठिनता होती । विचार करते ही सारी आबादी अपना डेरा- डडा उठा, अपने छकड़ों और पशुओं को आगे हाँक वृन्दावन की ओर चल दिए और वहाँ जाकर गोकुल की तरह एक बस्ती बना ली । ऐसा जान पड़ता है कि वृन्दावन को चरागाह तथा घास-पात की बहुतायत्त के विचार से पसन्द किया था । स्थानों का यह परिवर्तन प्रत्येक प्रकार मे कृष्ण के अनुकूल पड़ा । अब उनकी वंशी की सुरीली गूंज से सारा वृन्दावन गूंजने लगा । आसपास के वन-वाटिका का कोई स्थान कृष्ण और उनके साथियों से छिपा न रहा । जहाँ लहलहाती हरियाली देखते वहीं गायों को हाँक ले जाते । गौवें हरी घास से पेट भरती, आनन्दपूर्वक स्वच्छ वायु में अठखेलियाँ करती, उधर ये लड़के किसी छाया में बैठ गाने-बजाने का आनन्द लूटते । सन्ध्या को अपने पशुओ को हाँकते हुए अपने ग्राम में आ जाते । भोजन से छुट्टी पाने पर सारा गाँव, क्या बाल क्या वृद्ध, सभी एकत्र होते और कृष्ण की वंशी सुनते । युवा और युवतियाँ तो कृष्ण की वंशी पर ऐसे लट्टू थे कि जब वह वंशी बजाते तो इनके दल के दल एक वृत्त बनाकर उसके गिर्द नाचते, चक्कर लगाते और बाकी सब तमाशा देखते !
जंगल में जब कभी कोई जंगली पशु मिल जाता तो सबके सब मिलकर उसका पीछा करते और या तो उसको मार डालते या भगा देते । ऐसी घटनाओं का पुराणों में प्राय: वर्णन किया है । हम उनमें से कुछ को यहाँ उद्धृत करते हैं-
(1) एक दिन का वर्णन है कि कृष्ण और बलराम अपने साथियो सहित गौवें चरा रहे थे । साथियो में से किसी लड़के ने कहा कि इस बन में एक जगह खजूर (वृक्ष-विशेष) का कुज है जिसमें बड़ी और मीठी खजूर (फल) लगी हुई हैं । पर उस कुंज के बीच में एक भयकर
__________________________________
1 जंगलो में घूमने वाली ये जातियों यदि स्थिर होकर एक स्थान में बस जायें तो फिर वे अस्थिर जातियां न कहलाय दूसरी जातियों के समान शहरी व देहातो की आबादियो में मिल जाएँ और न इस कदर पशु रख सकें जितने कि व इस अवस्था में किसी खर्च के बगैर रख सकती है । ये जातियाँ इसी में प्रसन्न रहती हैं कि किसी स्थान पर सर्वदा के लिए न रहें । अपनी इच्छा से समय-समय पर घर बदला करती है । जब किसी एक जगह से उनका जी भर जाता है या वहाँ पर उनके पशुओ के लिए पूरी हरियाली नहीं रहती, तो वे उसी समय अपना डेरा उठा किसी दूसरा जगह झोपड़ी डाल देती हैं । हरिवंशपुराण मे इस स्थान व गृहों के बदलने का कारण यह लिखा है कि गोकुल मे भेड़िये का अधिकार इतना बढ गया कि पोप लोगो ने अपने जन व माल को बचाने के लिए इस जगह को छोड़ देना समझा